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Neeraj pal

Abstract

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Neeraj pal

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आत्म- दृष्टि

आत्म- दृष्टि

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दर-दर तू क्यों भटक रहा बनकर के नादान

हरि व्यापक सर्वत्र समाना, रोम -रोम में भगवान


इन नेत्रों से तू ढूँढ रहा, जो हैं मोर पंख समान

उन नेत्रों की बात निराली जिनसे दिखे भगवान


अगर तुझे है दर्शन की भूख, तो सुन लो देकर कान

जाकर एसे दर पर पहुँचो, जिसने लिया है उसे जान


उस दर पर कितनों ने जाकर लिया उसे पहचान

अंधकार का पर्दा हटाकर कर दिया तुमको हैरान


अहंकार जब वे दूर करेंगें, तब होगा उसका भान

अन्तर नेत्रों के पट खोलकर, अन्तर जगत का देंगे ज्ञान


इस जीवन में दर्शन कर के, कर न सकोगे बखान

दशा हृदय की एसी होगी, नित करोगे तुम गुणगान


बिन ज्ञान सब सूना लगता, असली आत्म ज्ञान

आँख खुली तो सब जग दिखता, विश्व रूप भगवान


इसी को कहते "बसुधैव- कुटम्बकम", जो है जीवन का ज्ञान

बना ले "नीरज"धन्य अमर जीवन, कर ज्ञानामृत का पान।


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