आशीष
आशीष
आशीष तुम्हारा सर पर है
फिर आज मुझे किसका डर है
जब भी उत्पीड़न मुझे मिला
दिल चीखा और होंठ हिला
तब तूने चुपके से आकार
दुख दूर किया, सुरभित घर है
बिना मांगे तुमने सदा दिया
मैं विस्मित हूँ, सब कार्य किया
कैसे तेरा गुणगान करूँ
कुछ शब्द नहीं, चक्षु तर है
इतने पर भी विश्वास नहीं
मैं तेरा हूँ, यह आस नहीं
हर रोज़ कृपा की सरिता है
हर रोज़ दया की निर्झर है
आशीष तुम्हारा सर पर है
