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Jyoti Astunkar

Abstract

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Jyoti Astunkar

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आस

आस

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आस क्या होती है?

कोई उस सूखी ज़मीन से पूछे,

जब तेज़ धूप की गर्मी से,

मिट्टी में दरारें पड़ने लगती हैं,

कभी तो जल बरसेगा, 

और ये दरारें मिट जाएंगी,

एक आस लग जाती है।


आस तो वो होती है,

जिसका एहसास इन्सान और पशु,

दोनों को ही बराबर का होता है,

जब भुक सताने लगती है,

और निवाला नजर आता नहीं,

जाने कब ये भूख मिटेगी,

एक आस लग जाती है,


आस बहुत ही अलग होती है,

एक इंतज़ार ही तो होती है,

किसी को एक औलाद पाने की,

तो किसी को एक हमसफर मिलने की,

कभी कोई अच्छा काम मिलने की,

तो कभी इम्तेहान पास कर लेने की,

आस, बस आस ही तो होती है|



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