आँखें
आँखें
मन मस्तिक नीचे,
छोटे छोटे दो कांच बिंदु ।
शरीर विज्ञान कहता,
उसे दो आँखें ।
जो जनम से आखिर तक,
रहती हैं साथ ।
जीवन चक्र की,
टीपती हर एक बात ।
चाहें दिन हो या रात ।
पहुंचाती मस्तिक तक,
हर एक बात ।
पहुंचाई हर बात पर,
मस्तिक होता चक्रीय ।
अच्छी और बुरी,
दोनों के लिए होता क्रीय ।
दोनों क्रिया में होता,
आँखों का साथ ।
आँखें भी कह देती,
अश्क में अपनी बात ।
खुशी के पल में,
हँसी के साथ,
खुशी के आँसू ।
दुःख के पल में,
रोते हुए आँसू ।
यह दोनों पल,
जीवन के अनमोल ।
बाकी सारा जीवन,
होता कवडी मोल ।
जब बंद होती,
वह आँखें,
जो देखती सारा जहाँ ।
शून्य होता मस्तिक,
शून्य होती जान,
शून्य होता जहान ।