आंगन की माटी - बुजुर्गो की लाठी
आंगन की माटी - बुजुर्गो की लाठी
सूरज मुखी का बाग
भरपेट रोटी छप्पन साग
बेमेल सुर अनोखे राग
जहां भर जाए हर एक दरार
वोह बसेरा है एक परिवार
चाचा चाची से भरा पूरा
दादी दादा बिन है अधूरा
भाई बहन का रिश्ता अनूठा
लड़कर भी कड़वाहट को दिखाए अंगूठा
कैसे भूले नोकझोक करते बीवी और भतार
वोह बसेरा है एक परिवार
यादों की ओढ़नी ओढ़े फुदकती गुड़िया तितली सी
पिता के कंधे का घोड़ा बनाए एक मुनिया हठीली सी
बच्चों का जीवन रंगीन बनाए
नाना नानी का प्यार दुलार
वोह बसेरा है एक परिवार
वोह खट्टी मीठी यादें वोह आंगन की माटी
जैसे बच्चे दूर हुए टूटी दादा की लाठी
अब परिवार के सदस्य चार
पति पत्नी बच्चों का घरबार
अधूरा रह गया बुजुर्गो का संसार
निहार रहे रास्ता करते इंतज़ार
कोई मनाता हम संग भी त्योहार
क्यों बना रहे मकान तोड़कर अपना ही घरबार
बुजुर्गो को अकेला छोड़ बनते पाप के भागीदार
क्यों भूल रहा तू ए इंसान
जहा बिन मूरत मंदिर बंजआये
वोह बसेरा है एक परिवार।।