आज़ादी के मायने (विधाता छंद)
आज़ादी के मायने (विधाता छंद)
ये आज़ादी मिले हमको हुए हैं साल पचहत्तर।
बड़ा अच्छा ये अवसर है जरा सोचें सभी मिलकर।
सही है क्या गलत है क्या मुनासिब क्या है वाजिब क्या।
आज़ादी का सही मतलब चलो समझें ज़रा बेहतर।
झुका मस्तक नहीं होता, वही होती है आज़ादी।
न सपनों पर लगे पहरा, वही होती है आज़ादी।
भरोसा हो सुरक्षा का, भले कोई कहीं भी हो।
मिले अवसर बराबर का, वही होती है आज़ादी।
ख़ुदी की बात मनवानी, नहीं होती है आज़ादी।
जलाना राष्ट्र सम्पत्ती, नहीं होती है आज़ादी।
अज़ादी का बहाना कर, जुबां दुश्मन की मत बोलो।
वतन के साथ गद्दारी, नहीं होती है आज़ादी।
बड़ी सुन्दर विविधता हो, तभी सच्ची है आज़ादी।
विविधता में भी समता हो, तभी सच्ची है आज़ादी।
जहाँ बोलें सभी खुलकर, जो मन में है बिना डर के।
सहन करने की क्षमता हो, तभी सच्ची है आज़ादी।
चुने जनता वही नेता, रखे जो राष्ट्र हित ऊपर।
न जाती से न मज़हब से, जो काबिल हो मिले अवसर।
सभी निर्णय लिए जाएँ, वतन आगे बढ़ाने को।
बराबर नागरिक सारे, भले मालिक हो या नौकर।
खुली छूटें नहीं मिलती, आज़ादी में भी है बंधन।
निरंकुशता नहीं होती, नियम होंगे ये है जीवन।
बिना कानून व्यवस्था, अराजकता ही फैलेगी।
सभी को हक़ मिले अपना, हो धनवाला या फ़िर निर्धन।
अगर मतभेद हैं थोड़े, नहीं उम्मीद तुम छोड़ो।
बिना हिंसा किये अपने, विचारों को भी तुम जोड़ो।
महकता है यहाँ गुलशन, अनेकों भिन्न फूलों से।
अलग पहचान कह डाली, से इनको तुम नहीं तोड़ो।
करें उपयोग निज भाषा, बिना झिझके या शरमाए।
जहाँ पोशाक देशी में, कोई होटल न ठुकराए।
मिले सम्मान अपनों को, तभी सार्थक है आज़ादी।
स्वदेशी सभ्यता अपनी, सभी मिलकर के अपनाए।
बने सँविधान इक ऐसा, जो निज पहचान झलकाये।
जो देसी साहिबों को छोड़, जनता को समझ पाये।
ज़रूरी है सभी समझें, नियम कानून जो अपने।
कठिन भाषा को तज करके, सरल भाषा को अपनाये।
गुलामी मानसिकता से, कभी पीछा छुड़ाएंगे।
यहाँ इतिहास सच्चा हम, न जाने कब पढ़ाएंगे।
आज़ादी राजनीतिक है, अभी बौद्धिक तो बाकी है।
कभी तो देश ये अपना, सनातन फिर बनाएंगे।