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Rohit Verma

Abstract

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Rohit Verma

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आज पंख खुद के

आज पंख खुद के

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"आज तो पंख दे दिए जाए"

"कब से उड़ान रद्द थी

आज सफर तह किया जाए"

"बस दूसरो को उड़ान देने में व्यस्त थे"

"आज खुद को समय दिया जाए"

"कल तक जो दूसरो को सपने दिखाते थे"

"आज खुद के सपने पूरे किए जाए"

"आज तो पंख दे दिए जाए"

"दिमाग को भर भर कर कबाड़ा करने से अच्छा इसको खाली कर दिया जाए"

"दूसरो के इशारों पर नाचने से अच्छा खुद के विचारो से आगे कदम बढ़ा दिए जाए"

"बहुत दिनों से  बैठे थे बेचैन

आज मिला खुला आसमान

अब हुए ये पंख तैयार"

"न किसी की जरूरत 

न किसी की उम्मीद

अकेले चलने के लिए है तैयार"




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