आज फिर काली घटा छाई है
आज फिर काली घटा छाई है
आज फिर काली घटा छाई है,
न जाने किसकी याद लिए आई है।
बूंदों की छम- छम करती हुई रागनी,
न जाने कौन-सा नया राग लाई है,
आज फिर काली घटा छाई है।
बचपन की यादें आज फिर से जागृत हो गई,
सतरंगी पंख लगा, मैं कल्पना में कहीं खो गई,
वो कागज़ की नाव आज फिर जीवित हो गई,
मेरे सूने से मन को अनगिनत रंगों से भर गई।
मोर की कूक में पता नहीं किसका संदेश लाई है,
बड़े दिनों बाद आज काली घटा छाई है।
कलम मेरी है पर शब्द पता नहीं किसके हैं,
मेरी कल्पना को लगता है फिर जीवित करने आई है,
बड़े दिनों बाद आज फिर काली घटा छाई है,
नन्हे पौधों की तरह मेरा मन भी हरा हो गया,
आज फिर से माँ के बने पकौड़ों की याद लाई है,
बड़े दिनों बाद काली घटा छाई है।
