आज की बेटियाँ
आज की बेटियाँ
तोड़ बेड़ियाँ रीत-रिवाज की,
घर से निकल अब आई बेटियाँ
जोश और उमंग क़े संग
डर को जीतने आई बेटियाँ।।
होठों पर मुस्कान सजा,
उम्मीद की किरण बन आई बेटियाँ
कमजोर समझते थे जो उनको,
जवाब देने उन्हे आई बेटियाँ।।
भू-धरा से अम्बर तक,
हर क्षेत्र में अब छाई बेटियाँ
रूढ़िवादिता अब तोड़ क़े सारी,
जग को जीतने आई बेटियाँ।।
ममता, करुणा की साक्षात मूर्ति,
प्रेम सिखाने आई बेटियाँ
अंधविश्वास से भटक रहे जो,
उन्हे मार्ग दिखाने आई बेटियाँ।।
बेटा-बेटी में फर्क नहीं अब,
ये भेद मिटाने आई बेटियाँ
मोहताज नहीं है अब वो किसी की
सोच बदलने आई बेटियाँ।।