आज की बेटी
आज की बेटी


एक कहानी आपको सुनता हूँ,
एक लड़की इसमे होती है,
हर शाम सुहानी रातो मे,
जिसकी झिझक भी जिंदा होती है,
वो घर से निकलने में डरती है,
निकले तो शर्मिंदा होती है,
सब बेखौफ सड़को पे फिरते है,
वो घर मे बैठ के रोती है,
घर के काम भी उसको करने है,
ना करे तो निंदा होती है।
उसके भी कुछ अपने सपने है,
हर रोज वो जिनको संजोता है,
मगर हर शाम ही अपने सपनो
को वो अश्कों से भिगोती है,
उसके जज्बातों की फिक्र नही,
ना खुशी की चिंता होती है,
मगर भनक भी ऐसी बातो की
जंगल की आग सी होती है,
हर गली में इसी की बाते अब,
हर कूँचे पे चर्चा होती है,
कहानी दर्द से भरी है,
सबको किरदार की चिंता होती है,
चलो ढूंढ के इसको बचाते है,
सबकी दिल से इच्छा होती है,
सब बाहर ढूंढने निकलते है,
वो सबके घर मे बैठ के रोती है,
हम जैसे समाज मे रहते हैं
ऐसी हर घर मे बेटी होती है।