आज बसंत याद आ रहा है
आज बसंत याद आ रहा है
शीत अपने चरम पर है पर आज बसंत याद आ रहा है ।
वो बसंत जब सब कुछ नया लगता है।
वो बसंत जब शीत की काली निर्जन रातो के छटने का समय आता है,
पेड़ो के सुशोभित होने का समय आता है, फूलों के खिलने का समय आता है,
प्रकृति के झूमने का समय आता है, ,पेड़ो में नव पल्लव आने का समय आता है,
आम में बौरों के आने का समय आता है, पावन पवन के चलने का समय आता है ,
कोयल के गाने का समय आता है, सरसों के फूल से सराबोर पीला बसंत आता है।
वो राग बसंत का समय होता है उसमे बसने को जी करता है।
वो बसंत जब पूरे भारतवर्ष की धरा नई होती है।
जब वातावरण, परिवेश, खेत खलिहान से लेकर अंतर्मन तक
पुराने कवच को उतार कर कुछ नया धारण करता है।
वो बसंत, उस बसंत की वैशाखी, उस बसंत का गुड़ी पड़वा,उस बसंत का नवरेह,
उस बसंत का विशु, उसका उगादी याद आ रहा है।
भारतवर्ष का वह नववर्ष याद आ रहा है।
तन में स्फूर्ति, मन में उल्लास और हृदय में चेतना को जगाने वाला बसंत याद आ रहा है।
निराशा, निष्क्रियता, निरक्षरता को मारने वाला बसंत याद आ रहा है।
आज बसंत याद आ रहा है।