आभूषण
आभूषण
सजने-सवरने में,
सबको है रुचि,
चाहे हो पुरुष या महिला,
सबको मिलती है,
इससे खुशी।
महंगे कपड़े एवं गहने पहनते हैं,
फिर भी संतुष्ट होते नहीं,
क्योंकि मनुष्य की है यह,
साधारण-सी आदत,
दिखाते फिरना सबको अपनी सजावट।
परंतु आज की भाग-दौड़ में,
कहाँ मिलता है हमें समय ?
यह जानने के लिए,
कि यूँ ही दिन-ब-दिन,
मनुष्य धन-संपत्ति के मोह में,
फँसते चले गए,
अपनी असीम धन-संपत्ति द्वारा,
कई गहने तैयार कर,
बढ़ा लिया अपनी ओर आकर्षण;
परंतु भूल गया है मनुष्य,
जीवन का मूल आभूषण,
जिसके बिना,
यदि कितने भी सोने-जवाहरात
के गहने पहन ले,
बिलकुल व्यर्थ है।
वह आभूषण है-'मुस्कान'!
वो मुस्कान,
जो माता-पिता के मुख पर,
अपनी संतान को,
सही-सलामत देख, आती है,
जो एक बालक के मुख पर,
परीक्षा में,
उत्तीर्ण होने पर,आती है,
जो किसी चित्रकार के मुख पर,
अपना चित्र,
सफलतापूर्वक पूर्ण करने पर, आती है।
जो एक चिकित्सक के मुख पर,
किसी मरीज़ की,
जान बचाने पर, आती है,
जो किसी मित्र के मुख पर,
अपने मित्र के,
नादान मज़ाकों से, आती है,
जो किसी खिलाड़ी के मुख पर,
जीतने पर आती है,
जो प्रत्येक मनुष्य के मुख पर,
कभी-न-कभी तो, आती है।
ये वह एकमात्र आभूषण है,
जो सदा रहता है साथ हमारे,
चाहे वह हो साधारण मनुष्य,
या विभिन्न क्षेत्रों के,
बड़े-बड़े सितारे।
इसलिए, इस आभूषण को,
कभी उतारना नहीं,
और यह स्मरण रखना कि-
जीवन की छोटी-छोटी खुशियों में ही खुश होना,
जीवन की सबसे बड़ी सफलता है।
