अ कलम तू इतना काँप क्यों रही है?
अ कलम तू इतना काँप क्यों रही है?
1. अ कलम आज तू इतना, काँप क्यों रही है?
तुझे तो चलना है बहुत दूर, अभी से हाँफ क्यों रही है?
जानता हूँ डगर आसान नहीं है तेरी,
पर अभी से रास्ता, तू नाप क्यों रही है?
2. हाँ, अजी हाँ, इस धरा के साक्षात भगवान हैं वो।
जितना लिखेगी, उतना कम लगेगा, जग का अथाह ज्ञान है वो।।
गुरु हैं वो, देव हैं वो, महिमा उनकी लिखनी है बहुत तुझे,
अपनी स्याही की तरफ़ तू , बार-बार झाँक क्यों रही है?
3. गोविन्द हैं सूरदास के, वो तुलसी के राम हैं।
पल-पल स्मरणीय- पूज्यनीय, इनमें समाये चारों धाम हैं।।
तेरी मंझधार फंसी नैया की पतवार हैं ये,
इस स्वार्थी लोक में किसी दूजे का, तू कर जाप क्यों रही है?
4. जीवन के हर अँधेरे में, रोशनी बनकर आएंगे ये।
जब बंद हो जाएगी सभी राह, तब नया रास्ता दिखाएंगे ये ।।
माना तेरे बिन ये भी अधूरे से हैं,
इनके बिन जीवन जीने की सोचने का, तू कर पाप क्यों रही है?
5. तू उठ, तू चल, गुरु बताए पथ का आगाज तो कर।
हर मंजिल पर तेरा ध्वज लहरेगा, तू गुरु को अपने साथ तो कर।।
मनीष भारद्वाज हर लेंगे तेरे मन की हर पीड़ा,
साथ गुरु का मिल गया जब , बेवजह अब विलाप क्यों रही है?
