२१ दिन - कविता
२१ दिन - कविता
कुछ कुछ ना कुछ कर रहे सब,
शायद अपने हुनर की तालश रहे अब।
मैं तो अपनी किताबों में हूं गुम,
कोई ख़ुश है तो कोई है गुम सुम।
कुछ कुछ ना कुछ कर रहे सब,
शायद अपने हुनर की तालश रहे अब।
मैं तो अपनी किताबों में हूं गुम,
कोई ख़ुश है तो कोई है गुम सुम।