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हिम स्पर्श 14

हिम स्पर्श 14

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14

वफ़ाई सीधे मार्ग पर जीप चला रही थी। मार्ग अंधकार भरा था। गगन में अंधेरी रात का प्रभुत्व था। वह मार्ग को देखते जा रही थी। पहले तो यह मार्ग ज्ञात लग रहा था किन्तु धीरे धीरे वह अज्ञात सा लगने लगा। मरुभूमि भी अज्ञात लगने लगी। जो मरुभूमि को वह चार पाँच दिनों से जानती थी वह कोई भिन्न थी। यह कोई दूसरी भूमि थी।

वफ़ाई ने संदेह के साथ स्वयं से पूछा, ”वफ़ाई, तुम इस मरुभूमि को जानती हो ?”

“कुछ कह नहीं सकती। यह मरुभूमि, यह मार्ग और यह रात्रि उस घर तक नहीं जाते जहां तुम जाना चाहती हो।“

“तो मैं कहाँ जा रही हूँ ?”

“मैं नहीं जानती।“

“तो रुक जाओ, जीत के पास लौट जाओ। अन्यथा तुम मार्ग भूल जाओगी और रात भर मरुभूमि में भटकती रहोगी।“

“जीत के पास तो कभी नहीं जाऊँगी।“

जीप चलती रही। प्रत्येक क्षण मार्ग एवं मरुभूमि अधिक से अधिक अज्ञात से होने लगे थे जो किसी अज्ञात स्थान की तरफ ले जा रहे थे। चंद्रोदय अभी दूर था।

आधे घंटे तक वफ़ाई जीप चलाती रही। यात्रा में उसे ना तो प्रकाश मिला, ना व्यक्ति मिले, ना वृक्ष मिले और ना ही मानव जीवन के कोई संकेत मिले। सब तरफ अखंड शून्यता व्याप्त थी। फिर भी वह चलती रही।

समय के कुछ और टुकड़े व्यतीत हो गए। वफ़ाई अज्ञात मार्ग पर, अज्ञात दिशा में, अज्ञात लक्ष्य की तरफ बढ़ रही थी।

अचानक दूर कहीं प्रकाश दिखाई दिया। वफ़ाई के अधरों पर स्मित आ गया। उसने दो चार गहरी साँसे ली, अच्छा लगा। वह निश्चिंत हो गई। उसने जीप की गति घटा दी। जीप प्रकाश की दिशा में धीरे धीरे गति करने लगी।

दूरी पर उसे कुछ गतिविधि दिखाई दी। कुछ आकृतियाँ यहाँ-वहाँ घूम रही थी।

“निश्चय ही वहाँ कोई मानव जीवन है।“ वफ़ाई आश्वस्त हो गई, “आज की रात्रि सुरक्षित व्यतीत हो जाएगी।”

आशा में वफ़ाई ने एक कोने में जीप लगा दी, जीप की लाइट बंद कर दी। अचानक अनेक लाइट ने जीप को घेर लिया। वफ़ाई अचंभित हो गई। वह अनेक सैनिकों से घिरी थी जिनके हाथों में भरी बंदूकें थी। वह सब धीरे धीरे जीप की तरफ बढ़ रहे थे।

वफ़ाई भयभीत थी अत: जीप में ही बैठी रही। एक सैनिक ने जीप का द्वार खटखटाया।

“बाहर आ जाओ।“उसने आदेश दिया।

संभालते हुए वफ़ाई जीप से बाहर आई।

“हाथ ऊपर।”एक सैनिक चिल्लाया। वफ़ाई ने हाथ ऊपर कर दिये। वफ़ाई को समझ आ गई कि वह भटक गई है। वह सेना की किसी छावनी पर आ गई है। उसने समर्पण कर दिया।

“लड़की, कौन हो तुम ?” किसी ने पूछा। वह वफ़ाई के समीप गया।

वफ़ाई ने गहरी साँस ली और धैर्य जुटाने लगी।

“मेरा नाम वफ़ाई है।“ स्मित के साथ वह बोली। स्मित ने काम किया।

“बंदूकें हटा लो और उसे अंदर ले चलो।“

कोई वफ़ाई को अंदर ले आया, बाकी सब चले गए।

“तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रही हो ?” अधिकारी के सौहार्दपूर्ण शब्दों से वफ़ाई स्वस्थ हो गई।

“मेरा नाम वफ़ाई है। मैं वर्तमानपत्र की फोटो पत्रकार हूँ। मैं यहाँ रण उत्सव को कवर करने आई हूँ।”

“वफ़ाई, रण उत्सव तो कब का सम्पन्न हो गया, क्या तुम नहीं जानती ?”

“हाँ, जानती हूँ।“

“तो फिर अभी भी तुम यहाँ क्यूँ हो ?”

“मेरे यहाँ आने से पहले ही वह सम्पन्न हो गया था। मैं देर से पहुँची हूँ।“

“तो तुम्हें यहाँ से चले जाना चाहिए।“

जाँच आधे घंटे तक चली।

“ठीक है, मैं तुम्हारी सभी बातों और दलीलों को मान लेता हूँ, यदि तुम मुझे तुम्हारा पहचान पत्र, अनुमति पत्र एवं तुम्हारे कार्यालय का पत्र दिखा दो।“

“हाँ, यह सब है मेरे पास। मैं आपको दिखा सकती हूँ, साहब।“

“तो चलो दिखाओ।”

“वह सब मेरे थेले में है। क्या मैं उसे जीप से ला सकती हूँ ?”

अधिकारी के संकेत पर एक व्यक्ति जाकर जीप से वफ़ाई का थेला ले आया। उसे खोलकर वह आवश्यक दस्तावेज़ और पत्र खोजने लगा। उसने पूरा थेला जाँच लिया किन्तु कुछ भी हाथ नहीं लगा।

“सा’ब, इसमें तो कुछ भी नहीं है।“

“वह थेले में ही होने चाहिए। थेले में एक लाल बटुआ होगा। उसमें देखो, मिल जाएंगे।“ वफ़ाई ने कहा।

वह लाल बटुए को खोजने लगा, उसे वह भी नहीं मिला।

“कोई लाल बटुआ नहीं है इसमें।“

“लाल बटुआ कहीं जीप में होगा। मैं देख कर आऊँ ?” वफ़ाई ने अरज की।

अधिकारी ने वफ़ाई को संदेह से देखा, कुछ क्षण मौन रहा और फिर बोला,”चलो जीप में देखते हैं।“

वफ़ाई जीप के अंदर, हर कोने में ढूंढती रही किन्तु उसे लाल बटुआ नहीं मिला। वह निराश हो गई, भयभीत हो गई।

“वफ़ाई, कहाँ है सारे कागज ?”

“सा’ब वह लाल बटुए में ही है, किन्तु वह लाल बटुआ नहीं मिल रहा है।“

“वफ़ाई, तुम हमारी हिरासत में हो।“

“किन्तु...सा’ब...” वफ़ाई पूरा कह न सकी।

“वफ़ाई, तुमने हमारे देश की सीमा का उल्लंघन किया है, हमें संदेह है कि तुम जासूस हो सकती हो।“

“जासूस? मैं ? सा’ब मैं पूर्ण भारतीय हूँ।“

“तुम किसके लिए काम करती हो ?”अधिकारी कठोर हो गया।

“नहीं सा’ब। मैं जन्म से ही भारतीय हूँ, कोई जासूस नहीं हूँ। मेरा विश्वास कीजिये।“

“बिना किसी प्रमाण के हम तुम पर विश्वास नहीं कर सकते।“

“मेरे पास वह बटुए में सब ... वह बटुआ अभी कहीं मिल नहीं... मेरा विश्वास करें... मैं सच्ची भारतीय हूँ। मैं वैधिक रूप से भारत की नागरिक हूँ।“

“इसे कस्टडी में ले जाओ।“अधिकारी ने आदेश दिये।

“वफ़ाई, कल हम इस विषय में आगे जाँच करेंगे। तब तक तुम भारतीय सेना के संरक्षण में हो।“

“सा’’ब, एक...” वफ़ाई भयभीत थी। पूरा कह नहीं पाई।

“तुम यहाँ सुरक्षित हो।”

“किन्तु मेरा क्या होगा ?”

“वह कल निश्चित करेंगे। तब तक भारतीय सेना के आतिथ्य का आनंद उठाओ।“एक रहस्यमय स्मित देकर वह चला गया।

एक कक्ष में वफ़ाई को बंद कर दिया गया, सारा सामान वफ़ाई से ले लिया गया।

रात्रि बीत गई। वफ़ाई को असुविधा अवश्य हुई किन्तु वह सुरक्षित थी। वह रात भर सो नहीं पाई थी अत: प्रभात में भी थकी हुई थी। वफ़ाई को यह संशय था कि बिना कागजों के वह स्वयं का पक्ष रख नहीं पाएगी। वह चिंतित थी। उस ने गहरी सांस ली, स्वयं को संभाला।

फिर से वफ़ाई की पूछताछ होने लगी। वह जवाब देती रही।

“सा’ब, मेरे पास सभी कागज और पहचान पत्र.....”

“तो उसे प्रस्तुत करो।“ जाँच अधिकारी ने स्मित के साथ कहा।

“हाँ, मुझे कुछ याद आया। कल संध्या समय मैं एक युवक के साथ थी। हो सकता है मेरा लाल बटुआ वहीं छुट गया हो। यदि आप मेरे साथ उसके घर चलें तो मैं आपको सब....”

“ओह, युवक ! इस मानव रहित भूमि पर युवक ? कहाँ है वह ? कौन है वह ?”

“मुझे उस स्थान का पता नहीं है किन्तु उस का नाम जीत है।“

“जीत ? वह धुनि चित्रकार ? तुम उसे जानती हो ? क्या तुम कल संध्या उसके साथ थी ?”

“जी। मेरा लाल बटुआ उसी के घर.... यदि हम उसके घर चले तो....“ऐसा करने की आवश्यकता नहीं है।“ उस अधिकारी ने फोन घुमाया।


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