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Sunita Maheshwari

Drama

5.0  

Sunita Maheshwari

Drama

विश्वास के पंख

विश्वास के पंख

11 mins
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"अरी नैना बिटिया, तनिक यहाँ तो आओ, सारे दिन का फैसन में ही लगी रहत हो।"

"आई दादी"

कहती हुई दस वर्षीया नैना आधी साड़ी बदन पर लपेटे हुए और आधी हाथ में लेकर दादी के समीप पहुँची तो दादी हँस पड़ी। नैना मचलते हुए बोली, "देखो न दादी साड़ी पहनना नहीं आ रहा, पहना दो न। "

दादी ने नैना को पास बुलाया और उसके माथे को चूमते हुए प्यार से गले लगा लिया। दादी ने नैना को बड़े प्यार से साड़ी पहना दी। सजी धजी प्यारी सी नैना को देख कर दादी नैना की माँ स्नेह लता से बोली, "बहू तनिक बिटिया को नज़र का टीका तो लगा दो। "

स्नेह लता ने नैना को घूर कर देखा और कहने लगी ,

"पढ़ने लिखने में तो मन लगता नहीं है , बस महारानी बन कर सारे दिन फ़ैशन में ही लगी रहती है। आप भी इसीका साथ देती हो। "

दादी की लाड़ली नैना आए दिन तरह तरह के फ़ैशन करती रहती और तरह तरह के पोज़ बना कर सेल्फ़ी लेती रहती। पढ़ाई में उसका ध्यान न लगता।

जब नैना दसवी कक्षा में थी, तब एक दिन उसकी अध्यापिका ने फ़ैशन के प्रति उसकी रुचि को पहचान कर उसे समझाया।

"नैना, क्या तुम जानती हो कि तुम बड़ी हो कर एक फ़ैशन डिजाइनर भी बन सकती हो। अपने शौक को अपना प्रोफ़ेशन भी बना सकती हो, पर उसके लिए तुम्हें मन लगा कर पढ़ना होगा। "

नैना के मन में अध्यापिका की बात घर कर गई। वह बहुत ध्यान से पढ़ने लगी | फ़ैशन में भी उसकी रुचि बढ़ती जा रही थी। बड़े होने के साथ साथ उसके शौक से सभी प्रभावित होने लगे थे। जब कभी कपड़े खरीदने होते, तब सभी नैना को अपने साथ ले जाना चाहते थे। उसकी पसंद के आउट फिट्स के रंग और डिजाइन सभी के ऊपर बहुत फबते थे। नैना को पारंपरिक परिधान बहुत पसंद थे। वह पारंपरिक वस्त्रों को कुछ नया रूप देने को उतावली रहती थी। बारहवीं कक्षा के बाद नैना ने फ़ैशन डिजाइनिंग कोर्स करना आरंभ कर दिया। अपने डिज़ाइन्स के लिए नैना यूनीवर्सिटी में बहुत प्रसिद्ध हो गई थी। उसने यूनीवर्सिटी में टॉप करके अपने सभी घर वालों को आश्चर्य चकित कर दिया था।

पढ़ाई समाप्त होने पर नैना के माता -पिता ने उसका विवाह बनारस के ही एक जाने माने उद्योगपति रमा शंकर जी के पुत्र नितिन के साथ कर दिया था , जो एक आई.ए.एस. ऑफिसर था। नितिन और नैना की जोड़ी बहुत सुन्दर थी। पहली ही दृष्टि में दोनों के मन प्रेम रंग में रंग गए थे। नैना और नितिन एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में पा कर बहुत खुश थे।

नटखट प्यारी नैना जैसे अपने मायके में सबकी लाड़ली थी, वैसे ही यहाँ भी सबकी प्रिय हो गयी थी। पर अंतर यह था कि ससुराल में उसे उतनी स्वतन्त्रता नहीं थी, जैसी अपने परिवार में थी। वह ससुराल के कुछ कठोर नियमों में गोल गोल जलेबी की तरह उलझ कर रह जाती थी, पर नितिन के प्यार की चाशनी में डूब कर वह सब परेशानियाँ भूल जाती थी। उसने परिस्थितियों के साथ समझौता कर लिया था। वह अपने परिवार की खुशी में ही खुशी ढूंढ लेती थी। लड़कियों के अंदर ईश्वर ने अद्भुत सहनशक्ति जो दी है। जब कभी उसका मन भारी हो जाता , वह अपने मायके चली जाती और बिंदास मस्ती करती। कुछ मस्ती के बाद फिर वही जिम्मेदारियों में आ कर उलझ जाती।

सारे दिन घर के कामों में लगे रहने के बाद भी वह इंटनेट, पत्रिकाएँ और पुस्तकों के माध्यम से फ़ैशन की दुनिया से जुड़ी रहती। बनारसी साड़ी उद्योग तो जैसे उसका सपना था। उसका बहुत मन होता था कि वह भी अपने ससुर जी के साड़ी के उद्योग को जाकर देखे। उसे समझे और वहाँ पर काम करके अपना योग दान दे। उसने रमा शंकर जी से कहा “पिताजी , मैं भी आपके साथ फैक्ट्री चलना चाहती हूँ | डिज़ाइन सेक्शन देखना चाहती हूँ। ”

लेकिन उसके ससुर रमाशंकर बिल्कुल भी इसके लिए तैयार नहीं थे| उन्होंने डांटते हुए कहा ,

“घर की बहू बेटियां क्या फैक्ट्री जाती अच्छी लगती हें? वहाँ तरह तरह के लोग होते हैं | तुम्हारा वहाँ क्या काम है बहू | तुम अपना किचिन सम्भालो। ”

बेचारी नैना मन मारकर बैठ गयी , उसकी प्रतिभा को जंग सी लगती जा रही थी ? उसके ससुर रमा शंकर पुराने ख्यालात के व्यक्ति थे। नैना की सासु माँ मीनाक्षी सरल स्वभाव की थीं, पर पति के आगे उनकी एक न चलती थी। मीनाक्षी नैना को भरपूर प्यार देती थी।

सब कुछ ठीक चल रहा था , एक दिन अचानक रमा शंकर जी के पेट में बहुत दर्द हुआ

डॉक्टर को दिखाया। सभी टेस्ट हुए , पता चला कि उनके पेट में कैंसर बुरी तरह फ़ैल चुका है। डॉक्टर ने नाउम्मीदी जताते हुए नैना और नितिन से कहा था , "आई एम सॉरी । कैंसर फोर्थ स्टेज पर है। अब कोई ऑपरेशन, कीमो आदि से कुछ लाभ नहीं होगा। अब तो गंगा जल पिलाओ या कीमो कराओ, एक ही बात है। कोई मिरेकिल हो जाय तो बात अलग है। ”

यह सुन कर नैना और नितिन को ऐसा लगा जैसे उन्हें चार सौ चालीस बोल्ट का करेंट लग गया हो। कैंसर का नाम सुनते ही पूरा परिवार टूट सा गया था , कुछ समय तक रमा शंकर जी से इस भयानक सत्य को छिपाया गया किन्तु जब उन्हें यह पता लगा तो उनकी आँखों से आंसुओं की झड़ी लग गई थी। वे अपने आपको पल भर में लूटा सा महसूस कर रहे थे। उनके सामने मीनाक्षी का चेहरा घूम रहा था। कौन संभालेगा इसे | उनके साड़ी के इतने बड़े उद्योग का क्या होगा ? उनका सबसे बड़ा दुख तो यह था, कि उनका इतना होनहार पुत्र नितिन उनके बसे बसाये कारोबार को देखना ही नहीं चाहता था ,नितिन को इस पारिवारिक पारंपरिक उद्योग में कोई रुचि नहीं थी , नितिन कुछ नया करना चाहता था , वह आई. ए. एस. कर के सरकारी अफ़सर बन गया था , साड़ी उद्योग जैसे बड़े कारोबार के लिए किसी बाहर के व्यक्ति पर कैसे विश्वास किया जाय , रमा शंकर जी को सब चिंताएं खाए जा रही थीं , उन्हें अपनी मृत्यु सामने नाचती दिखाई दे रही थी , उनका एक एक पल कठिन होता जा रहा था , शारीरिक पीड़ा के साथ मानसिक पीड़ा ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था।

एक दिन पूरा परिवार रमा शंकर जी के पास बैठा था ,पिताजी को परेशान देख नितिन ने उनसे कहा , "पिताजी , मुझे तो अपने जॉब पर जाना ही होगा, साड़ी उद्योग संभालने के लिए आप नैना पर विश्वास कीजिये। मैंने उसकी क़ाबलियत देखी है। वह यह अच्छी तरह संभाल सकती है, प उसे उचित निर्देश दीजिये। उसे काम समझाइये , वह जरूर सफल होगी।"

"नैना का नाम सुनते ही रमा शंकर जी उखड़ गए और बोले,

"नितिन, उद्योग संभालना बच्चों का खेल नहीं है। नैना घर देखेगी या फ़ैक्टरी? तरह तरह के लोगों के साथ डील करना कोई आसान काम नहीं होता है। औरतें तो घर और बच्चों को ही देख लें , वही बहुत है। "

नितिन ने समझाते हुए कहा ,

"पिताजी , अब समय बदल गया है , आज लड़कियां सब क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं। शिक्षा के कारण उनमें योग्यता और आत्मविश्वास भी बढ़ा है | फिर नैना ने तो फ़ैशन डिजाइनिंग का कोर्स भी किया है ,आज वे सब वर्गों के लोगों से बातचीत कर सकती हैं , चाहें कारीगर हों या अधिकारी। "

रमा शंकर जी बोले ,

" फ़ैशन की चार किताबें पढ़ लेने से इतना बड़ा उद्योग संभालना नहीं आ जाता है , घर को ही अच्छे से सजा लें, यही बहुत है। खाली शौक मात्र से से उद्योग नहीं चला करते। "

नैना रमा शंकर जी के नकारात्मक उत्तर सुन कर निराश हो रही थी। मीनक्षी जी ने डरते डरते रमा शंकर जी से कहा

"सुनिए , मेरा खयाल है कि कुछ समय के लिए आप नैना को काम संभालने की अनुमति दे दीजिये। यदि वह अपने काम पर खरी न उतरे, तो उससे काम वापस ले लीजिये। "

रमा शंकर जी मीनाक्षी, नैना और नितिन की बात से सहमत तो नहीं थे , फिर भी सबका मन देख कर उन्होंने अनमने मन से कहा ,

"ठीक है , नैना तुम कुछ दिन फ़ैक्टरी जा कर देख सकती हो। "

पिताजी के शब्द सुन कर नैना की खुशी का ठिकाना न था | उसका बचपन का सपना मूर्त रूप जो ले रहा था। अपने बचपन के लक्ष्य को पूरा होता देख उसकी आँखों से खुशी के मोती छलक उठे थे ,नैना ने पिताजी के चरण स्पर्श किए।

दूसरे ही दिन नैना सुबह पाँच बजे उठ गई , उसने जल्दी जल्दी कुछ घर के काम किए और फिर भगवान और बड़ों को प्रणाम कर फ़ैक्टरी जाने के लिए तैयार हो गई। उसके मन में खुशी , उत्साह, डर, उमंग का मिला जुला भाव था। वह चाहती थी कि उससे कहीं भी कोई त्रुटि न हो। इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी जो मिली थी उसे।

नैना की जिंदगी का नया अध्याय आरंभ हो चुका था।

नैना पूर्ण विश्वास के साथ फ़ैक्टरी गई , वहाँ के मैनेजर ने नैना को सभी से मिलवाया ,उसे पूरी फ़ैक्टरी दिखाई ,पावरलूम पर साड़ियां बनाई जा रही थीं। तरह तरह के बेल बूटे, झालर, जाल आदि के डिज़ाइनस डाल कर साड़ियो को सजाया जा रहा था। रेशमी बनारसी साड़ी पर ज़री का सुंदर काम देख कर नैना आनंदित हो उठी थी। वह उस उद्योग को आसमान की ऊंचाइयों तक ले जाने के सपने बुनने लगी थी। नैना ने धीरे धीरे एक एक कर सभी विभागों का कार्य समझा। न केवल डिज़ाइन और निर्माणकार्य अपितु कच्चे माल की खरीदारी और साड़ियों की बिक्री पर भी उसने ध्यान दिया। वह बहुत ही मेहनती और योग्य थी। कुछ ही दिनों में फ़ैक्टरी के सभी कारीगर तथा अधिकारी उसकी प्रतिभा से प्रभावित हो गए थे।

प्रतिदिन नैना घर आकार रमा शंकर जी को दिन भर के कामों से अवगत कराती। रमा शंकर जी बेमन से उसकी बात सुन कर कह देते , "हूँ ठीक है। " पर उन्हें भी नैना पर धीरे धीरे विश्वास होता जा रहा था।

नैना धीरे धीरे फैक्ट्री के सभी कामों में दक्ष होती जा रही थी। समय पंख लगा कर उड़ता जा रहा था। वह कारीगरों को आधुनिक डिजाइनस और रंगों के चयन के के लिए तरह तरह के सुझाव देती , एक वर्ष में ही उसने कई अपेक्षित परिवर्तन कर इस व्यवसाय को आगे बढ़ा दिया था। उसने इसे केवल साड़ी तक ही सीमित नहीं रखा। समय की मांग के हिसाब से उसने कुर्ता, दुपट्टा, लॉन्ग ड्रेस, टॉप, ड्रेस मेटीरियल, कुशन कवर आदि का निर्माण कराना भी शुरू कर दिया था | साथ ही ऑनलाइन माल सप्लाई का काम भी शुरू कर दिया था। उसके काम करने के ढंग से पूरा स्टाफ़ प्रभावित था। इससे उद्योग से होने वाली आय में भी बढ़ोत्तरी हो गई थी।

रमा शंकर जी का स्वास्थ्य दिन प्रति दिन गिरता जा रहा था , कुछ समय बाद नैना ने कहा ,

"पिताजी, आज मैं आपको फैक्ट्री ले जाना चाहती हूँ |"

रमा शंकर जी ने कहा , मुझसे चला भी नहीं जा रहा और तुम कह रही हो कि मुझे फैक्ट्री ले जाओगी। "नैना ने बड़े विश्वास और आदर के साथ कहा,

"जी, पिताजी, आपकी व्हील चेयर कार में रख लेती हूँ। कार से उतर कर आप व्हील चेयर पर ऑफिस चलिए | ऑफिस में सभी आपसे मिलना चाहते हैं। "

यों तो रमा शंकर जी के लिए दुनिया बेमानी सी हो गई थी ,पर अपने खून पसीने से बनाई हुई उस फैक्ट्री में उनकी जान पड़ी थी , वे खुश हो गए, एकदम चमचमाता सफ़ेद कुर्ता पायजामा पहन कर वे तैयार हो गए।

उनके ऑफिस पहुँचते ही उनके स्टाफ़ ने उनका भव्य स्वागत किया , रमा शंकर जी की आँखों से खुशी के आँसू छलकने लगे थे, वे भाव विभोर हो कर बोले, "आप सब की मेहनत का ही यह परिणाम है कि आज यह उद्योग इतनी ऊंचाई को छू रहा है। "

रमा शंकर जी की बातें सुन कर सभी कारीगर और अधिकारी भी भावुक हो गए थे , एक बहुत ही पुराना कारीगर बोला ,

"सर, नैना मैडम बहुत होशियार हैं। वे हमें नई नई डिज़ाइन्स सीखा रही हैं। "

नैना और मैनेजर ने वहाँ हुए सभी परिवर्तनों से जब रमा शंकर जी को अवगत कराया , तो वे आश्चर्य चकित रह गए | उन्हें नैना की काबलियत पर जो संदेह था , वह दूर हो गया था , उन्होने नैना से बड़े प्यार से कहा ,

"बेटी, मेरी सोच सचमुच गलत थी। बदलते जमाने में आज लड़कियां बहुत आगे बढ़ गई हैं। तुमने आज जो कर दिखाया है, उसकी मुझे कतई आशा नहीं थी , सच है जहाँ योग्यता के साथ आत्मविश्वास, हिम्मत और लगन हो वहाँ सफलता अवश्य मिलती है, फिर चाहें कार्य करने वाला पुरुष हो या नारी। "

रमा शंकर जी से सराहना के शब्द सुन कर नैना का मन मयूर विश्वास के रंगीन पंख लगा खुशी से नाचने लगा था।


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