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पुत्रमोह

पुत्रमोह

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( किसी ने उसे यह नहीं बताया कि " बेटा बेटी के जन्म का कारण पुरुष में मौजूद गुणसूत्र होते हैं ना कि स्त्री में । स्त्री में एक ही तरह के गुणसूत्र XX होते हैं लेकिन पुरुष में दो तरह के गुणसूत्र XY होते हैं और जो गुणसूत्र स्त्री गुणसूत्र से जुड़ता है, तब लड़का या लड़की पैदा होती है । लड़का होगा या लड़की इसमें दूर दूर तक स्त्री का लेना देना नहीं है ।" )

पुत्रमोह ही तो था कि बेटे की लालच में किशोरीलाल ने दुबारा शादी करने का फैसला लिया था। उसकी बीवी को पिछले महीने फिर से बेटी हुई, अब किशोरीलाल की चार लड़कियां हो गयी थी । बेटे की लालच में वो अब चार लड़कियों का पिता था लेकिन सिर्फ नाम का, क्योंकि पुत्रमोह में कभी पुत्रीप्रेम नहीं उपज सकता है ।

उसने अपनी बीवी और चारों लड़कियों को घर से बेघर कर दिया, गरीबी का आलम था तो ना ही पुलिस में रपट लिखी ना ही पंचायत जुटी । बेटियों को लेकर लाली अपने मायके आ गयी, कुछ दिनों में उसने झाड़ू पौछा कपड़े का काम दूसरों के यहाँ शुरू कर दिया । बड़ी बेटी भी माँ की तरह एक दर्ज़ी के यहाँ काम करने लगी । इतना कमा लेती थी दोनों की भूखा ना सोना पड़े ।

उधर किशोरीलाल को एक बेघर औरत मिल गयी और उसने अपनी पहली शादी की बात छुपाकर दूसरी शादी कर ली । बेटे की चाह में उसने अपनी बीवी को रानी की तरह रखा, साल भर भी नहीं हुआ कि किशोरीलाल पांचवीं लड़की का बाप बन गया । इस बात पर उसने अपनी बीवी को बहुत पीटा तो उसकी बीवी घर में रखी नगदी और बच्ची को लेकर भाग गयी ।

शाम को घर लौटकर उसने खूब छानाबीनी की ना तो बीवी मिली ना ही पैसे । पुत्रमोह ने उसे ठग लिया था । वह पगलाया से फिरता रहा, लेकिन कोई उसकी सुनने वाला नहीं था । पड़ोसियों ने भी खूब जली कटी सुनाई, सबने उसे लाली को बेघर करने से मिली बददुआओ का असर बताया ।

किसी ने उसे यह नहीं बताया कि " बेटा बेटी के जन्म का कारण पुरुष में मौजूद गुणसूत्र होते हैं ना कि स्त्री में । स्त्री में एक ही तरह के गुणसूत्र XX होते हैं लेकिन पुरुष में दो तरह के गुणसूत्र XY होते हैं और जो गुणसूत्र स्त्री गुणसूत्र से जुड़ता है, तब लड़का या लड़की पैदा होती है । लड़का होगा या लड़की इसमें दूर दूर तक स्त्री का लेना देना नहीं है ।"

पुरुष जो पुत्रमोह में स्त्रियों को प्रताड़ित करते हैं, उन्हें यह वैज्ञानिक सच जानकर खुद को कोसना बेहतर होगा ।

अंधे समाज में किसी को यह जानकारी ही नहीं होगी, जिन्हें होगी तो वह मुँह नहीं खोलेंगे क्योंकि बात उनके पुरुषत्व पर आ जायेगी और हो भी यही रहा था कि पढ़े लिखे समाज में कोई उसे सच बताने वाला नहीं था।

सिवाय एक बच्चे के जो बहुत दिनों से उसे इस वैज्ञानिक तथ्य के बारे में बताने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसके पिता ने उसे इस सच्चाई को समाज में लाने से रोका था । क्योंकि यदि ये सच बीस लोगों के बीच आया तो सौ लोगों के बीच पहुचने में देर नहीं लगेगी और फिर औरतें कभी अपने ऊपर पुत्र पैदा ना होने का इल्जाम लेगीं ।

उस बच्चे की इस बात की जानकारी मिलने का कारण खुद उसका पिता ही था । जिसने बेटे को डॉक्टर बनाने की चाह में, उसे बायोलॉजी दिलाई थी और बायोलॉजी पढे बिना कोई भी डॉक्टर बन नहीं सकता । कक्षा 10 और 12 में इस बात को स्पष्ट शब्दों में बताया गया कि " लड़का लड़की होने का मुख्य कारण सिर्फ पुरुष में उपस्थित गुणसूत्र हैं , इसमें स्त्री का कोई लेना देना नहीं है । स्त्री कोख में बच्चे को पालती है ।"

यह सच्चाई उसने अपने पिता को भी बताई साथ ही बोला था दीदी को लेकर आप हमेशा मम्मी को सुनाते हैं जबकि दीदी आज आपकी वजह से है ना कि मम्मी की वजह से । इस बात पर उसने एक तमाचा भी खाया था ।

दुबारा जब उसने इस सच को जुबां पर लाया तो जमकर पिटाई हुई , इससे बौखलाए उस बच्चे ने पिता की गैरमौजूदगी में जाकर किशोरीलाल को सच्चाई बता दी, साथ ही वह स्कूल की किताब भी ले गया जिसमें यह सच लिखा था ।

किशोरीलाल को अपने पुरुषत्व पर उँगली उठाना सहन नहीं हुआ और वह बच्चे पर चिल्लाने लगा, शोर सुनकर भीड़ इकट्ठा हो गयी लेकिन बच्चा भी तेज आवाज में बोलने लगा और उसने भीड़ में मौजूद हर औरत को सच बताया क्योंकि पुरुषों के गले से नीचे यह सच उतर नहीं रहा था । जिन पुरुषों को इस बात का पता था उनके सिर नीचे थे ।

उस बच्चे का पिता इस बात से अंज़ान था कि उसकी गैरमौजूदगी में बच्चे ने कितनों को सच बता दिया, और उन सभी को बताया कि वह भी सबको इस बारें में बता दें । औरतों ने इस बात को आग की तरह फैलाया, जिस कॉलोनी का हिस्सा वह बच्चा और किशोरीलाल था उधर ये बात फैल गयी थी ।

किशोरीलाल शर्मिंदा तो था लेकिन उसका पुरुष होने का अहंकार कम नहीं हुआ, लुट तो पहले चुका ही था वह अब शराब की लत ने उसे घेर लिया था औऱ एक रोज़ उसने आत्महत्या कर ली ।

लाली अपनी बेटियों के लिए औरत से आदमी बन गयी थी, और बड़ी बेटी बाकी बहिनों के लिए माँ । दोनों की कमाई से घर सुचारू रूप से चलने लगा था । वह सभी अपनी दुनिया में सुकून से थी कि ना अब गाली सुनने मिलती थी, न लाली को बेटी पैदा करने के लिए ताने । ना ही बेटियों को बेटी बनकर पैदा होने की मार ।


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