बचपन की वो काली रात
बचपन की वो काली रात
आज मैं पहली दफा कहानी लिख रही हूँ जिसका उद्देश्य कुछ सिखाना है. मैं एक लड़की हूँ इसलिए शायद इस पीड़ा को ज्यादा महसूस कर पा रही हूँ जो कि एक लड़की की ही है।
लड़की का जीवन कितना खूबसूरत, निश्छल, मनमोहक, कोमल, प्यारा लगता है, वो फूल-सी बच्ची बेबाक बोलती है, बेसुध हो घूमती है, निश्चिंत हो के प्यार जताती है बेपरवाह हो खिलखिलाती है, आह बस एकटक निहारते रहो, ये मुस्कान हर किसी का दिल जीत जाती है।
परंतु कब तक जब तक इस समाज की मोहमाया में न पड़ी हो, जब तक जालिम के दाँव पेच न सुने हों। ये दुनिया जब उसे लोकलाज, भय, वीभत्स, हास्य सारे रसों से रूबरू करवाती है उसका बचपन, बचपन में ही कहीं गुम हो जाता है।
तो बात कुछ समय पहले की है जब उसने एक बहुत खूबसूरत युवती का आवरण ले लिया था। तब उसने बचपन का कड़वा सच बताया जिसे सुन मैं हतप्रभ रह गयी। ये वही बच्ची थी जिसका बखान मैंने ऊपर किया है। नटखट बच्ची अचानक मुझे काफी समझदार नजर आ रही थी।
हाँ तो उसके पापा के एक बहुत अच्छे दोस्त थे जिन्हें वो अपना भाई ही मानते थे, उनका अक्सर घर पर आना जाना लगा रहता था, वो तब एक नासमझ बच्ची थी, जिसे जो प्यार करे उसे उससे लगाव हो जाए और वही अच्छा लगता था जो कि स्वभाविक है। ये अंकल उसे बहुत प्यार करते थे, हमेशा फल तोहफा लाते थे। उसे भी बड़े पसंद थे वो अंकल, उस दिन सुबह उन्होंने कहा बेटा आज अपन दोनो साथ सोयेंगे, उसने कहा हाँ पापा के साथ नहीं आज आपके साथ, आप बहुत अच्छे हो पर पापा मम्मा से पूछना पडे़गा।
फिर उसने सहजता से पापा से पूछा, उन्होंने न कर दिया। वो खिलखिलाता चेहरा उदास हो गया, उसने मम्मी से जिद की।बेचारे माँ बाप..भरोसा तो था पर एक डर भी लगा था। फिर भी बेटी कुछ न सोचे और उसके प्यार में आकर कलेजे में पत्थर रखकर उन्होंने हाँ कर दिया।
वो बहुत खुश थी कि उसके मम्मी-पापा कितने अच्छे हैं और उसके फेवरेट अंकल के साथ सोएगी जैसा कि हर बच्चा चाहता है और जिद करता है।
फिर वो काली रात आयी जिसने बचपन का गला घोंट दिया, उन अंकल की नीयत में खोट थी, उन्होंने अपनी हरकते शुरु की, बच्ची को कुछ समझ नहीं आ रहा था, उसकी आँख खुली और उसे कुछ अलग लगा, वो असहज हो दरवाजे की तरफ भागी, अंकल ने रोका, बहलाया फुसलाया पर इस बार अंकल उसे अच्छे नहीं लग रहे थे और उसने उनकी एक न सुनी। भाग के माँ के पास गयी और सब बताया।
माँ ने उसे गले लगाकर सुलाया और सुबह अंकल को बिना कुछ कहे विदा किया।अब कभी वो अंकल दुबारा न आये। पर कहीं न कहीं उस बच्ची का बचपन छीन गये। उसने फिर कभी किसी पे भरोसा न कर पाया।
इसलिए माँ बाप रिश्ते तो बनाएँ परंतु पूर्णतया भरोसा न करें और बच्चों का पूरा ध्यान खुद रखें। हर कोई बुरा नहीं होता पर हर कोई भला भी तो नहीं होता। अच्छे बुरे की समझ बताएँ व बचपन छिनने से बचाएँ।