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Keshav Upadhyay

Drama

5.0  

Keshav Upadhyay

Drama

मुलाकात सफर की

मुलाकात सफर की

4 mins
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कभी बस मे सफर करते वक्त किसी खूबसूरत - सी लड़की से मुलाकात हुई है ?

हुई होगी स्वाभाविक है।

दोपहर के तीन बज रहे थे, मुझे इलाहाबाद की ओर जाना था, मिर्जापुर बस स्टैण्ड पर बस खड़ी थी, चिलचिलाती धूप से मै बेहाल था, स्टैण्ड पर लगे दुकानो से मैने एक बाॅटल पानी और कुछ चिप्स सफर के लिए खरीदा, बस मे पहली चार शीटों की पंक्ति खचाखच यात्रीयों से भरी थी, देखकर थोड़ी सी गर्मी और बढ गयी, मै जाकर पांंचवी रो मे विंडो सीट पकड़ राहत की सांस ले ही रहा था कि मेरे कानो मे एक हल्की हवा सी 'एक्सक्यूज़ मी' की आवाज़ आई, ऐसा लगा जैसे 'उंंगली' जलने पर फूंक मारने से क्षणिक सुख मिल गया हो, कुछ पल मै इस सुख का आनन्द ले ही रहा था की तभी दोबारा इसी सुख की अनुभूती हुई,

"कोई बैठा है क्या ?"

"जी हाँँ, मेरा बैग।"

इस बार मैने तनिक भी देरी नही की उसके होठों को अपनी बातो से हँसाने को मजबूर करने की,

'ह्ह्ह्...' डिपंल्स दिखाते हुए, मैने भी प्रतीउत्तर मे अपने दांत छिपाते हुए, होठों मे खिचाव बना के हँस दिया,

"बैग उपर रखा जाता है।"

'ज्ज्जी' न चाहते हुए भी मैने अपने असहाय बैग को अपने पैरो का सहारा दिया, झट से उठाकर अपने पैरो के सहारे अपने उपर रख लिया चूंकि उसमे कुछ ज़्यादा ही पैसे थे तो मैने उसे ऊपर रखना मुनासिब नही समझा,

"कुछ ज़्यादा ही प्यार है बैग से ?'"

''नही पैसो से, इसमे कुछ पैसे हैं।"

"ओह्ह...फिर भी, ऊपर रख सकते हो यही बैठे हो।"

"लाओ।"

"क्या..."

वो घबराकर अपने आपको संवारने लगी,

"लाओ...आपका भी बैग उपर रख दूं...''

"ओह्ह...बिल्कुल''

मैने दोनो ही बैग उपर रख दिए, एक्सपेंसिव था, बैग भी ड्रेस भी और बातों से सहूलियत तो नही, पर रईसियत झलक रही थी

''कहाँँ जा रही हो ?"

''ये बस कहाँँ जा रही ?" उसने तंज भरा जवाब दिया।

"आई मीन, इलाहाबाद, कहाँँ...?"

"इलाहाबाद''

"अकेले...?"

मुझे लगा बोलेगी 'क्यो अकेले नही जा सकती' पर नही इस बार सीधे मुँँह जवाब मिला पर डिप्लोमेटिक,

"हाँँ अकेले। कई बार सफर मे अकेले ही जाना पड़ता है।"

"मैं तो अक्सर ही अकेले सफर करता हूँ।''

बोलकर ज़्यादा नही पर उसकी नज़रो मे कुछ ज़्यादा ही तेज़ी से हँस दिया, वो मूक होकर कुछ वक्त तक मेरी तरफ देखती रही, शायद कुछ सोच रही थी, और मै बहुत कुछ, काफी खूबसूरत थी, पर उसकी बातें उससे भी ज़्यादा खूबसूरत, कद करीब-करीब पांच फिट चार इंच, रंग ऐसा जो किसी को भी मोह ले, और फिर मौहतरमा की फिजिकल एपिरियेंस की तो बात ही ना करे, मिर्जापुर एक छोटा सा शहर, जहाँँ एक ऐसी लड़की मिली जो शायद मेरे लिए भी थोड़ा स्ट्रेंज था, उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसने ऐसे कहीं दूर बस से सफर नही किया हो, नतीजन, जब कंडक्टर ने टिकट काटकर बकाये पैसो का विवरण टिकट के पीछे लिखकर आगे बढ गया और वो अपने बकाये पैसे मांगने लगी तो मै श्योर हो गया कि वो नई है।

हम दोनो कुछ पल से शांत बैठे ही थे तब तक उसके फोन की रिंग बजी, 'हैलो...' और फिर कुछ बातें हुई, उसने किसी को अपना लोकेशन दिया, थोड़ी ही देर मे फोन कट गया, ''ब्वायफ्रेंड....?'' मैने थोड़ा संभलकर पूछा, "एक्सक्यूज़ मी।"

मै शांत हो गया और अपना फोन कंडक्ट करने लगा, कुछ वक्त वो इधर उधर देखती हुई मुझे ईग्नोर करती रही, तभी मेरा फोन बजा मैने पिक किया बताया कि दो घंटे मे मै हास्टल पहुंंच जाऊंगा, फोन कटा मैने फोन कान से हटाया ''गर्लफ्रेंड....?'' 'हु....'

'हार्टचोर...?' 'हु..' 'हाँँ ब्वायफ्रेंड था मेरा, पहली बार मै...मिलने जा रही उससे' 'वाव वेरी नाईस, बहुत खुशनसीब है वो...' ' हा बिल्कुल हर्टचोर की तरह' ये सुनकर अच्छा लगा की वो मुझे एक अच्छे सहयात्री के अलावा एक अच्छा इंसान भी समझ रही थी, फिर क्या था कुछ मैने सुनाई अपनी मोहब्बत की दास्तांं कुछ उसने, बातो ही बातो मे कब सफर का अंतिम पड़ाव आ गया पता ही नही चला, मैनै उससे बताया मेरा डेस्टीनेशन आ गया 'तुम्हारा बैग..' कहते हुए उसने अपनी भौहों से उपर की ओर ईशारा किया 'ओह्ह..हाॅ...थैंक्स' 'किसलिए...?'चिलचिलाती धूप मे अपनी बातो की ठंडी बरसात के लिए' फिर से 'एक्सक्यूज़ मी...!' वैसे जनाब आप बातें काफी अच्छी कर लेते है, फिलहाल जरा बाहर देखिए धुप गया...अब शाम हो गई है' 'मेरा डेस्टिनेशन...' ' जी बिल्कुल' एक बार तो दिल किया की हांथ आगे बढा के हैंडशेक तो कर ही लु पर हिम्मत ना हुई, मै बस की गेट पर था, बस काफी स्लो हो गई थी, वो मेरी तरफ देख रही थी और मै ना चाहते हुए उसके खयालो मे डुबा था, अंततः मै बस से उतर गया, जब तक मै बस से उतर रहा था तब तक वो उस विंडो सीट पर खिसक चुकी थी, खिड़की से उसने हाथ बढाया हैंडशेक के लिए पर इस बार बस ना रुकी, हमने काफी वक्त गुजारा साथ मे, काफी बातें की पर एक दूसरे का नाम पूछने की हिम्मत ना कर पाए,

उम्मीद है वो भी इस तीन घंटे के सफर को न भूल पाएगी

शायद ये स्टोरी उस तक पहुंंच जाए, मुझे तो जान गई वो बस मेरा नाम जान जाए,

'उसका नाम और स्पर्श दोनो ही रह गया...'


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