संघर्ष की शक्ल.
संघर्ष की शक्ल.
मैं जीवन में एक बार फिर अपमानित हुआ था। मुझे उसे फाइव स्टार होटल नुमा भवन
से धक्के मार कर बाहर निकाल दिया गया था, जहां तथाकथित संघर्षशीलों पर
धारावहिक तैयार किए जाने की घोषणा की गई थी। इसे किसी चैनल पर भी दिखाया जाना था।
पहली बार सुन कर मुझे लगा कि शायद यह देश भर के संघर्षशीलों का कोई टैलेंट शो
है। लिहाजा मैं भी वहां चला गया। पता नहीं कैसे मुझे गुमान हो गया कि यदि बात
संघर्ष की ही है तो मैं तब से संघर्ष कर रहा हूं जब मैं इसका मतलब भी नहीं
जानता था।
संघर्षशीलों का जमावड़ा एक फाइव स्टार होटल में था। मुझे पहली बार ऐसे किसी
होटल में घुसने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। डरते – डरते भीतर गया तो वहां मानो
पूरा इन्द्र लोक ही सजा था । इत्र की ऐसी गहरी खुशबू पहली बार महसूस की। नाक
में घुस रहे सुगंध से मुझे भान हो गया कि आस – पास ही कहीं सुस्वादु भोजन का
भी प्रबंध है।
हमसे ज्यादा स्मार्ट तो वे वेटर लग रहे थे जो मेहमानों के बीच पानी की बोतलें
व खाने – पीने की चीजें सर्व कर रहे थे।
डरते हुए हम कुछ चिरकुट टाइप लोग मंच से थोड़ी दूर पर खड़े हो गए।
मूंछों के नीचे मंद – मंद मुस्कुरा रहा वह दबंग सा नजर आने वाला शख्स मुझे
राजनीति और माफ़िया का काकटेल नजर आ रहा था। उसके असलहाधारी असंख्य सुरक्षा
गार्ड बंदूक ताने मंच के नीचे खड़े थे। बताया गया कि जनाब के खिलाफ अदालत में
दर्जनों मुकदमे दर्ज है। बेचारे के महीने के आधे दिन कोर्ट – कचहरी के चक्कर
काटते बीत जाते हैं। लेकिन इसके बावजूद वे अपना संघर्ष जारी रखे हुए हैं।
विवादों के चलते सहसा चर्चा में आई एक नौजवान अभिनेत्री अपनी जुल्फे सहलाते
हुए बता रही थी कि किस तरह बचपन में उसे अपनी पसंदीदा चाकलेट नहीं मिल पाती
थी। लेकिन आज उसके आलीशान मकान में सिर्फ चाकलेट के लिए अलग कमरा है।
अधेड़ उम्र की एक और अभिनेत्री पर नजर पड़ते ही मैं चौक पड़ा।
अरे ... यह तो वहीं है जिसकी एक फिल्म हाल में हिट हुई है। हालांकि इससे पहले
उसकी दर्जनों फिल्में फ्लाप हो चुकी थी। चालाक इतनी कि एक फिल्म के चल निकलते
ही किसी अमीरजादे की चौथी बीवी बन कर गृहस्थी जमा ली।
मंच पर नशे – मारपीट और महिलाओं से बदसलूकी के लिए बदनाम हो चुका एक क्रिकेटर
भी बैठा था जो बता रहा था कि वह अब सुधर चुका है।
इस बीच हमने महसूस किया कि मंच के आस – पास मौजूद कुछ सूटेड – बुटेड लोग हमारी
ओर हिकारत भरी नजरों से देख रहे हैं।
वे हमें धकियाते हुए एक कमरे में ले गए जहां एक बूढ़ा सूटेड – बुटेड बैठा था।
उन्होंने हमसे यहां आने की वजह पूछी।
मैने डरते हुए कहा ... सुना है कि यहां संघर्षशील लोगों पर कोई सीरियल बन रहा
है और यदि बात संघर्ष की ही है तो यह हमने भी कम नहीं किया है।
अच्छा तुम लोगों ने कौन सा तीर मारा है।
मैने कहा, जी पारिवारिक दूध का व्यवसाय से लेकर घर – घर अखबार बांटने यहां
तक कि फुटपाथ पर नाले के ऊपर बैठ कर मैने पत्र – पत्रिकाएं बेच कर सालों
गुजारा किया, लेकिन पढ़ाई जारी रखी। आज बगैर तीन – पांच के इतना कमा लेता
हूं कि बाल – बच्चों का ख़र्चा आराम से चल रहा है।
अ.. च्..छा वह उत्पल दत्त के अंदाज में बोला।
और तुमने
मेरे साथ खड़े एक और शख्स ने जवाब दिया, मैं पहले फुटपाथ पर रुमाल बेचता
था, आज मेरी अपनी दुकान है, जिसमें मेरे चारों बेटे एडजस्ट है।
और तुम
जहरीली हंसी के साथ उसने फिर व्यंग्यात्मक अंदाज में कहा
जी , भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में मुझ पर पांच बार जानलेवा हमला हो चुका
है, लेकिन मैं ज़रा भी विचलित नहीं हुआ और अपनी लड़ाई जारी रखे हूँ।
यह सब सुन कर सूटेड – बुटेड लोग परेशान हो उठे। वह बूढ़ा कुछ देर तक सिर पर
हाथ फेरता रहा,मानो उसे अधकपारी हो रही हो।
फिर अचानक चुटकियां बजाते हुए बोला, चलो..पांच मिनट के अंदर अगर तुम सब
यहां से नहीं निकले तो धक्के मार कर तुम्हें बाहर किया जाएगा। वह ज़ोर से
चिल्लाया।
लेकिन , अबे चोप्प.
निकालो सब को बाहर। वह चीख उठा।
मैने साहस कर पूछा, तब आप संघर्ष किसे कहोगे।
जवाब मिला, अबे संघर्ष किसी कहते हैं , जानना है न, तो फलां तारीख को अमुक
चैनल पर देख लेना।
कुछ देर बाद ही धकिया कर हमें बाहर निकाल दिया गया। मार्शल्स ने हमें इतनी जोर
से धक्का दिया कि हम एक दूसरे पर गिरते – गिरते बचे।
निराश होकर मैं घर की ओर चल पड़ा, एक – एक कदम उठाना मेरे लिए भारी हो रहा
था।