कल्पना की शादी पार्ट वन
कल्पना की शादी पार्ट वन
कल्पना की शादी उसके पढ़े-लिखे होने के कारण तय हो गयी थी।
कल्पना की शादी उसकी पढ़ाई-लिखाई से हुई थी लेकिन कल्पना इस बात से अनजान थी। शादी कल्पना से नहीं उसकी डिग्री से हुई थी। शादी के बाद जब वो सुसराल गयी तो उसे कुछ समझ नहीं आया। शादी के बाद भी उसकी सास बोलती कि तुम लोग साथ में रहोगे तो दिक्कत हो सकती है, कल्पना ने सोचा मेरी सास कितना प्यार करती हैं मुझसे जो मेरे बारे में सोच रही है और कल्पना का पति भी यही समझाता कि मम्मी तुम्हारे लिए ही सोचती हैं, इसलिए तुम्हें अपने पास सुलाती है।
एक हफ्ता गुज़र गया शादी का, उसके बाद उसका पति बोला, जाओ तुम अपने घर चली जाओ, तीन महीने के लिए तभी कल्पना बोली तीन महीने ? इतने दिन के लिए कल्पना मना भी नहीं कर सकती थी लेकिन वो समझ नहीं पा रही थी कि ऐसा क्यूँ बोल रहा हैं उसका पति। अभी तो मुझे इस घर को जानना है। मना करती तो शायद सब सोचने लगते कि बहुत बेकार हैं इसके माँ बाप जो कल्पना वहाँ जाना नहीं चाहती। कल्पना तो अपने घर की सबसे लाडली लड़की थी।
वो चली गयी अपने माँ बाप के घर, कल्पना अपनी माँ के घर आ गयी। माँ के घर आने के बाद कुछ दिन हो गएI अब सब लोग बात बनाने लगे। सब पूछते कब लेने आ रहे हैं ? कोई पूछता अभी गयी नहीं ? वो अपने पति को बोलती आप कब आओगे सब लोग पूछते हैं। कल्पना पूछती आप लेने क्यूँ नहीं आ रहे हो कोई परेशानी हो तो बताओ मैं आपके साथ हूँ। उसका पति उसे हमेशा यही बोलता- तुम अपनी माँ के यहाँ हो। तुम्हें क्या दिक्कत है ? तुम आराम से रहो ? अखिर वो उसे लेकर क्यूँ नहीं जाना चाहता था। अब तक यह बात समझ नहीं आ रही थी कल्पना को। अब तो कल्पना के माँ बाप को भी अजीब लगने लगा था। क्यूँकि उसके माँ बाप ने उसके पति से बोला कि घर पर मिलने तो आ सकते होI लेकिन वो मिलने भी नहीं आता।
एक दिन कल्पना को पता चला कि उसका पति उसके घर के पास किसी रिश्तेदार के यहाँ आया हैं और वहाँ वो इससे पहले भी आया था। अब तो कल्पना को जिद हो गई कि उससे मिलने आ जाओ। उधर जिद में लड़ाई बढ़ गयी कल्पना बोली आप बस मिलने आ जाओ फिर चले जाओ। कल्पना का गुस्सा चरम सीमा पर था। कल्पना घर से खुद ही निकल गयी मिलने के लिये कि आज सामने बात करूँगी क्यूँ कर रहे हैं वो मेरे साथ ऐसा। कल्पना ने वहाँ का पता पूछा तो उसके पति ने नहीं बताया। अब कल्पना बस से उतर गयी और बोली कि मैं अब वहाँ नहीं आऊँगी कभी भी और वो अपने पति को यह सब बोलकर रेल्वे स्टेशन जाने को बोली और इतना सुनके भी उसका पति पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
उधर कल्पना के माँ बाप का तो रो रोके बुरा हाल हो गया। उधर उसके पति को फोन करा तो उसका नंबर स्विच ऑफ आ रहा था। कल्पना तो थक गयी थी ऐसी जिंदगी से वो तो उसे खत्म करने का फैसला कर चुकी थीं। सुसराल वालों को फोन करा तो बोलते हैं ऐसे कैसे चली गयी। सुसराल वालों पर क्या फर्क पड़ता। जैसे कल्पना के माँ बाप का तो सब कुछ खत्म होने वाला था। सुसराल वालों का बोलना था वो पढ़ी लिखी लड़की हैं वो ऐसा कैसा कर सकती हैं ? अगर कल्पना पढ़ी लिखी लड़की थी तो क्या उसे अपने पति के साथ रहने का हक़ नहीं था। आखिर कल्पना के ससुराल वाले क्या चाहते थे कल्पना से। क्यूँ उसको एक नाम के रिश्ते में रखना चाहते थे ? कल्पना अपनी किस्मत पर रोती।
कल्पना को तेज़ बुखार के कारण वो रेल्वे प्लैटफॉर्म पर बेहोश हो गयी और उसके माँ बाप ने उसे ढूँढ लिया। वो बेहोशी में भी अपने पति के बारे में पूछ रही थी।