जिंदगी रुकती नहीं
जिंदगी रुकती नहीं
रिषभ अपने लैपटॉप स्क्रीन पर ऐसे नज़रें गड़ाए बैठा है ,जैसे मानो जैसे उसके पलकों ने भी झपकने से छूट्टी ले ली हो!
कीबोर्ड पर उंगिलियाँ मानो किसी रेस कोष के घोड़े से भी तेज दौड़ रही हो ,भाई हो भी क्यों न दो घंटे में बॉस को इंप्रेस करने वाला प्रेजेंटेशन जो देना हैं ! ऋषब एक एमएनसी में मैनेजर हैं जहां वो पिछले पांच सालों से काम कर रहा था !ये जॉब उसे कॉलेज ख़तम करते ही मिली थीं !!डेडलाइन्स, क्लाइंट मीटिंग ऑफिस टूर और प्रेजेंटेशन ये चारो जैसे की अब ऋषब की जिंदगी में बिन बुलाए मेहमानो की तरह दाखिल हो चुकीं हैं ! इस बेरहम कॉरपोरेट जगत में रिषभ को मानो किसी फैक्ट्री में काम करने वाले मशीन सा बना दिया है! मानो लगता ही नहीं ,वो रिषभ हैं जिसके कविता और सुरो से पुरा कॉलेज झूम उठता था और प्रेरित होता था !
वो कहते है न कुछ नायाब निर्माण के पीछे कुछ प्रेरणा होती हैं! शायद रिषभ की प्रेरणा पांच साल पहले वैशाली के साथ चली गई थी! जी हां, वैशाली काॅलेज में रिषभ और वैशाली कि जोड़ी एक उदाहरण हुआ करती थी!
कभी ये "कुछ कुछ होता है "के 'राहुल 'और 'अंजलि 'के तरह लड़ते थे तो कभी "डीएलजे "की तरह एक दूसरे को चाहते थे, चाहे वो क्लासेज बंक करना हो ,या स्टूडेंट के हक के लिए प्रोटेस्ट हो, वैशाली हमेशा रिषभ के पास ही पाई जाति थी ! फिर ऐसा क्या हुआ कि सबको प्रेरित करने वाला रिषभ आज चार दिवारी में अपनी जिंदगी को कैद करके रखा है! और वैशाली, पता नई पिछले पाच सालो से वो कहा है, रिषभ के फोन में वॉट्सएप मेसेज आता है फोन उठा कर देखा तो उसके कॉलेज वॉट्सएप ग्रुप में रिषभ की एक बच्मेट तनिया ने लिखा है "हेय गायेस इट इज द टाइम टू रीयूनाइट लेट्स मीट ",ये पढ़ते ही रिषभ की तेज़ चलती उंगीलिया मानो थम सी गई ,निगाहें लैपटॉप स्क्रीन के जगह सेलफोन के स्क्रीन में आकर रुक गई ,रिषभ की नजरे उस ग्रुप में एक ही नाम ढूंढ रई हैं ,मगर पिछले पाच सालों से रिषभ तो क्या उसके बैच के किसी भी लड़के या लड़कियां को ये नहीं पता कि वैशाली हैं कहा ?
उसे एक मैसेज के बाद कॉलेज वॉट्स ग ग्रुप में मानो मैसेजो की बौछार होने लगी !
कब आना है ? कंहा रहना है ?क्या खाना हैं ?क्या पीना हैं?
सारी चर्चाएं एक एक कर होने लगी! रिषभ ने प्रेजेंटेशन बॉस के सामने प्रेजेंट की ,बॉस ने उसकी बहुत तारीफ़ की, भाई हो भी क्यो न पिछले पाच सालो में अपनी कड़ी मेहनत और लगन से काम करके रिषभ इस कंपनी का मैनेजर जो बना हैं प्रेजेंटेशन ख़तम होते ही रिषभ ने अपने बॉस से चार दिनों की छुट्टी की मांग की तो ,बदले में बॉस ने बोला, आ..ए.. रीयूनियन में चार दिन क्या करोगे ट्रो डेज विल बी एनफ और हैं प्लीज कैरी युर लैपटाप मिस्टर भाटिया के प्रोजेक्ट के अपडेट मुझे देते रहना, एन्जॉय ,अल्ल द बेस्ट! बॉस कि ये बाते सुनकर पाच सालो में रिषभ को ये पहली बार महसूस हुआ, कि उसके प्रोफेशनल जिन्दगी में हक और एशान के बीच में कोई फर्क हो नई बचा हैं ,पहली बार मानो उसे कॉरपोरेट जगत के चार दिवारी कि पीड़ा सताने लगीं ,उसका मन तो किया उसी वकत रेजिग्नेशन लेटर बॉस के मुंह पर जा के मारे ,की तभी कॉलेज वॉट्सएप ग्रुप में एक और मेसेज आया जहां रिषभ की एक और बचमेट माधुरी ने पूछा हैं ,अनी आइडिया व्हेयर इस वैशाली? ये सवाल रिषभ को पिछले पाच सालो से हर घड़ी सता रहा है, इस सवाल के उतर में रिषभ बहुत कुछ लिखना चाहता उसका मन तो कर रहा है, वो पूछे की प्लीज कोई बताओ कहा हैं वैशाली क्या कर रही है वो क्यूं उसने एक बार भी मुझसे दूर जाने से नहीं रोका, वैशाली के साथ बिताया हुआ हर एक पल मानो रिषभ की आंखों के सामने एक रुपहले पर्दे में चल रहे किसी फिल्म की तरह आने में हैं !
घर पहुंच कर रिषभ ने जल्दी से अपना सामान पैक कर लिया और डिनर ख़तम कर के बिस्तर पर जा लेटा ,उसकी फ्लाइट सुबह पाच बजे की है ,और इसी बैचैनी में, सारी रात बस करवटे बदलते ही कट गई ,इयरली मॉर्निंग फ्लाइट ही कुछ और ही होती हैं ,जैसे जैसे रिषभ की फ्लाइट आगे बढ़ रही है साथ साथ रात के काले साए निकलती सूरज की किरणे अलविदा कह रही है काम के सिलसिले में तो पिछले पाच सालों में रिषभ, ने बहुत सरा हवाई सफर किया हैं ,लेकिन इस सफर में रिषभ ,का उद्देश्य एक दम साफ़ हैं , बस एक बार वैशाली से मिलना !
जब की अभी तक ये तय है कि वैशाली इस रीयूनियन में आ भी रही हैं, या नहीं ,लेकिन रिषभ ,का दिल तो सिर्फ इतना चाहता है ,कि वो एक बार वैशाली को गले से लगा कर बोले, सिर्फ हमारे अच्छे भविष्य ही गया था !
कभी कभार एक अच्छा भविष्य संवारने की कोशिश में हम अक्सर अपने वर्तमान को कुचल देते हैं रिषभ और वैशाली के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है
मन में आस लिए रिषभ एयरपोर्ट से एग्जिस्ट कर रहा है एक्जिस्ट गेट के बाहर लोगो का जमावड़ा लगा हैं ,और किसी किसी के हाथ में तो प्लेकार्ट्स भी हैं जिनमें अलग अलग लोगो के नाम लिखे हैं ,
रिषभ की नजरे उन नामों का दौरा करते हुए एक नाम पर आ कर रूकती हैं, जिसमे एक बहुत ही पहचनी हैंडराइटिंग में लिखा है रिषभ , पूरे पाच सालो बाद रिषभ की आंखों में खुशी और सुकून का मिश्रण दिखा ,जब उसने देखा कि प्लेकार्ट्स पक्री खरी हैं वैशाली ।
तो धीमे धीमे क़दमों से रिषभ ,वैशाली के ओर बढ़ने लगा मगर ,वैशाली के कदम वहीं खड़े रहे ,इससे पहले रिषभ कुछ बोलता ,वैशाली ने रिषभ से पूछा, तुम्हारी दाढ़ी कहा गई ,?मआई गोड दाढ़ी के बिना तो एक दम बचे लग रहे हो, जवाब में रिषभ ने बोला कॉरपोरेट ने "बाहर से बच्चा "और "दिमाग बूढ़ा" बना दिया है ,
और तुमने भी खुद को वैसा ही रखा है बल्कि मै तो कहूंगा कि पिछले पाच सालों में तुम्हारी उम्र दस साल कम हो गई है! क्या बात है योगा चल रहा है क्या ?
"बिल्कुल "!वैशाली ने बोला ,अब अब तो ये मेरा प्रोफेशन हैं, शिखिम में अब हम एक स्कूल चलाते हैं, और वहीं रहते हैं ,मै तो यहां कल देर रात ही आगई थी! और अनूप उनकी फ्लाइट अभी सेवन थर्टी लैंड हुई हैं, पता नहीं वो कहा रह गए
"अनूप ?"रिषभ ने पूछा!
"मेरे हसबैंड अनूप और हमारा बेटा रिषभ!" वैशाली ने प्लेकार्ट में लिखे नाम कि ओर इशारा करते हुए कहा ,अपने अंदर उठे तूफान को दबा कर ,बड़ी ही आसानी से बाते बोल दी ,वैशाली ने ,दूसरी ओर , रिषभ ,वैशाली की इस नए जीवन के बारे में खुश तो हो रहा, है ,पर साथ साथ अपने आपको भी कोष रहा है,
इससे पहले रिषभ अपने थरथराये जुबान से कुछ पूछता तब तक वैशाली के पति अनूप और उनका दो साल का बेटा रिषभ वहां आपहुंचे हैं ,
पूरे पाच सालों बाद अपनी ही आंखों के सामने रिषभ वैशाली को एक मां और किसी और की पत्नी के रूप में देख कर , ये समझ गया कि ,जिन्दगी रुकती नहीं रिषभ और वैशाली के फोन्स ,
एक साथ बज उठे देखा तो कॉलेज वॉट्स ग्रुप में उनकी एक देस्त स्नेहा ने वैशाली को एड किया हैं ,देर न करते हुई रिषभ ने ग्रुप में टाईप किया ,वेलकम वैशाली !
"सो हैप्पी टू सी यूं आफ्टर फाइव ईयर्स " !