कोख की कीमत
कोख की कीमत
आई वी एफ फर्टिलिटी सेंटर के उस वार्ड में डॉ. की प्रतीक्षा करती उस युवती के चेहरे पर न जाने कैसी अनकही पीड़ा मुझे दिखी , कि रोक न पाई खुद को।
पहले तो लगा प्रसव पीडा से उसका चेहरा दर्द से भिंचा है , लेकिन मन मानने को तैयार न था।
डिलिवरी के लिए आई हो ? मेरी बेटी की ही उम्र रही होगी उसकी, मैं बेतकल्लुफ हो उठी। बदले में उसके गले से गों - गों की अस्फुट ध्वनि सुनते ही मुझपर सन्नाटा सा छा गया।
"यह न ही बोल पाती , न सुन पाती है , मेरी बहू है। "
"बेटा भी बोल नहीं पाता लेकिन सुनता है।"
इसी वजह से हम दोनों परिवार शादी के लिए तैयार हो गये।।
मेरी नजर में एकबारगी उस ग्रामीण महिला का सम्मान बढ़ गया - यह तो आपने बहुत अच्छा सोचा।
"लेकिन मेरे मन में डर भी तो समाया था कि इनकी संतान यदि ऐसी ही हुई तो ये दोनों कैसे पालेंगे ?"
"क्यों आपसब हैं ना ?"
"अरे ! हमसब आखिर इनको और इनके बच्चों को संभालने के लिए ?"
तभी हमने डाॅ से मिल, बाहर से ही सारी व्यवस्था कर ली।
"अच्छा ! आपका बेटा इसके लिए तैयार हो गया ?"
"उसे क्या करना था ? आज देख लो बहू जुड़वाँ बच्चों को जनने यहाँ आई है ।"
बहू के चेहरे पर लेबर पेन के अलावे बहुत कुछ था जो उसकी उसकी लस्त - पस्त , निढाल देह और उसके चेहरे के भावों से स्पष्ट था ।
अपने दर्द को किसी से न बाँट पाने की अपनी अशक्तता उसे किस कदर कचोट रही होगी , इसका अनुमान था मुझे ।
" जुड़वाँ बच्चों को जन्म देने की बात बहू को डरा रही है क्या ?" मैंने पूछ ही लिया ।
"अरे नहीं मैडम जी ! करमजली को पता है कि बच्चों को जन्म देने के बाद इसे वापस अपने मायके चले जाना है हमेशा के लिए।"
मैं मुँह बाये उसकी तरफ देख ही रही थी कि वह बोल उठी -
"मैं भला इसकी गोद भरने के लिए दस - बीस लाख खर्च करने वाली थी क्या ?"
हिकारत भरी नजर से बहू को देखा क्या जैसे थूक दिया उसके ऊपर -
" हमने इसके मायके वालों को साफ कह दिया कि बच्चे तो इससे संभलने वाले हैं नहीं , यह सासरे रहकर करेगी क्या ?"
मैंने अपने पीहर की एक विधवा और बाँझ औरत से अपने बेटे की शादी करवाने की बात इसी शर्त पर की है कि वह इन्हीं जुड़वाँ बच्चों को अपनी संतान मानकर प्यार से पालेगी ।
मैं अभी तक सदमे में थी , सौदेबाज़ी में इस काईंया औरत की कोई मिसाल नहीं ! शतरंज की एक ही चाल चल इसने बाजी अपने नाम कर ली
स्त्री की कातरता , असहायता की सजीव मूर्ति बनी मूक - बधिर युवती की पीड़ा को सम्पूर्णता में खुद तक संप्रेषित होते मैं महसूस तो कर रही थी किन्तु इस पल अपनी मुखरता का मौन की बर्फीली सिल्ली में बदलते देखना जैसे अपने ही अक्श को उस युवती के आईने में उतारने जैसा ही था।