संघर्ष
संघर्ष
मैं और प्रीती छठवीं से साथ पढ़े है। वो पढ़ाई में बहुत अच्छी थी, हम दोनों हमेशा साथ रहते, साथ लंच करते, पास-पास सीट पर बैठते। पूरे स्कूल में हमारी दोस्ती के चर्चे थे। पर इन सब के साथ हम दोनों में पढ़ाई को लेकर प्रतिस्पर्धा भी थी। हमेशा हम दोनों में एक दूसरे से ज्यादा नम्बर लाने की होड़ रहती थी। कभी वो आगे तो कभी मैं लेकिन इस प्रतिस्पर्धा से हमारे दोस्ती पर कोई फर्क नहीं पड़ता था।
प्रीती एक सामान्य परिवार से थी। माँ, एक बड़ा भाई और एक छोटा भाई ये सब साथ रहते थे, पर जब प्रीती 8 साल की थी तभी उसके पापा कमाने के लिए सऊदी अरब चले गए थे। वहाँ वो किसी मुसीबत में फसे गये थे जिस कारण वो चाह कर भी 15 साल तक वापस नहीं आ पाये। पर इन 15 सालो में उनके परिवार पर क्या कुछ नहीं बीता। जब भी कोई प्रीती से उसके पापा के लिए पूछता तो वो"मेरे पापा सऊदी गए है, बस वो इसी साल के अंत मे आने वाले हैं।" कहती।
पर हर बार होता ये ही था कि वो नही आते थे। हर बार प्रीती निरास होती। पर सातवीं क्लास में पढ़ने वाली छोटी सी प्रीती कर भी क्या सकती थी सिर्फ इंतजार के सिवा। प्रीती के पापा हर महीने सऊदी से कुछ पैसे भेजा करते थे जिससे घर चल जाता था। प्रीती भी प्रयास किया करती कि उसके पापा वापस आ जाये, इसके लिए उसने न जाने कितने सरकारी खत लिखे, पर कुछ नही हो पाता था। कभी-कभी लोग तो ये तक बोल देते कि"वो नहीं आयेगे, इसके पापा तो वहीं रहने लगे है" और भी न जाने क्या फालतू की बातें।
प्रीती भी हार न मानने वालों में से थी। अपनी पढ़ाई और घर के खर्च के लिए प्रीती ट्यूशन पढ़ाती थी। वो जी जान लगा कर पढ़ाई करती, हमेशा अच्छे नम्बर लाती। इण्टर करने के बाद उसने अलाहाबाद में बी एस सी में एडमिशन लिया। अब घर चलाने और उसकी पढ़ाई के लिए ज्यादा पैसे चाहिए थे। जितने पैसे उसके पापा भेजा करते थे उतने से काम नहीं हो पाता था। माँ भी देख रही थी कि मेरी बेटी जिंदगी के सफर में कितनी मुसीबतों का सामना कर रही है। प्रीती ने भी एक दृढ़ निश्चय बना रखी थी, चाहे कितनी भी मुश्किलें आ जाये पर मै हार न मानूँगी, अपनी मंजिल पा कर रहूंगी। अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए एक माँ पैसे इकट्ठा नहीं कर पा रही थी पर बेटी को पढ़ाना तो है ही फिर चाहे जो करना पड़े। माँ ने अपने सारे गहने बेच दिये। प्रीती उन पैसो से, ट्यूशन के पैसो से और लोगो के कुछ उधार लेकर अपनी पढ़ाई पूरी की।
मुझे आज भी याद है अच्छे से प्रीती खुशी से चहकते हुए वंदिता " ये लो मुँह मीठा करो, अंकल जी, आंटी जी, भैया आप भी लो, आज मैंने अपनी कामियाबी की सीढ़ी पर पहला कदम रखा है, इतने दिनों से जो संघर्ष कर रही थी, आज उसका फल मिला मुझे, मुझे नौकरी मिल गयी, मै प्राइमरी की टीचर बन गयी। आज मै बेहद खुश हूँ। उसे इतना खुश देख ऐसा लग रहा था कि उसके पैर तो जमीन पर नहीं है, वो तो मानो आसमान में उड़ रही हो।
वंदिता "तुम सच कहा करती थी, मत रोओ प्रीती एक दिन तुमको सब कुछ मिलेगा जिसके लिए तुम परेशान हो, सच मे भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं, आज तुम्हारी बातें सच हो गयी। मेरी मेहनत का आज मुझे फल मिल गया।"
जैसी ही नौकरी से वेतन मिलना शुरु हुआ प्रीती ने जल्द से जल्द अपना कर्ज चुकाया, धीऱे-धीऱे पैसे भी जोड़ना शुरू किया और अपनी माँ के लिए ज्यादा तो नहीं थोड़े गहने भी ले कर दिए। ऐसे करते उसकी नौकरी को 3, 4 साल बीत गये। अब माँ को बेटी की शादी की चिन्ता सताने लगी। उसके लिए लड़का देखा जाने लगा। प्रीती के जीवन की एक बड़ी तकलीफ तो कम हुई थी, पर उसे अभी भी एक तकलीफ थी, वो थी उसके पापा की। एक दिन अचानक प्रीती ने बोला वंदिता "मेर पापा आ रहे हैं, मुझे हर बार की तरह इस बार भी सच नहीं लगा, क्यूंकि प्रीती बचपन से अपने पापा का इंतजार कर रही थी, और अब तो 15 साल बीत बीत गये हैं, अब तो वो बड़ी हो गई है, वो हर बार घर वापस आने का वादा करते पर आ नहीं पात पर इस बार ये वादा पूरा हुआ, उसके पापा भी उसकी शादी तय होनेे से पहले वापस आ गए। प्रीती की एक अच्छे घर मे शादी तय हुई और उसके माँ-पापा ने उसका कन्या-दान किया। वो अपने पति, बेटे और परिवार के साथ बहुत खुश है। बचपन से लेकर शादी तक उसने जिन संघर्ष का सामना किया, उससे वो कभी घबरा कर भागी नहीं बल्कि उसका हिम्मत से सामना किया और अपनी मंजिल पा कर ही रही। इस बार जब मिली तो प्रीती ने बताया कि अब वो प्राइमरी से जूनियर की टीचर हो गयी। ये जान कर मुझे बहुत खुशी हुई कि अब वो अपने प्रगति के पथ पर है।
इसलिए कभी भी नारी शक्ति को आँका नहीं जा सकता, जब वो अपनी मन की करने पर आ जाती है तो फिर दुनिया की कोई ताकत उसे रोक नहीं सकती। प्रीती और प्रीती जैसी और भी बेटियां है जो दुनिया के लोगों के लिए मिशाल है, एक प्रेणना है। पर अभी भी न जाने कितने लोग है जो बेटी पैदा होने पर दुखी होते हैं। जिस घर ऐसी बेटी पैदा हो उस घर क्या में अभी भी बेटे की चाह हो ? धन्य है वो माँ-बाप जिसके घर ऐसी बेटियां होती है।