सौतेली माँ का निर्णय
सौतेली माँ का निर्णय
अरे उमा दीदी आज तुम फिर से लेट आयी ?
उमा: माफ करना मैडम जी वो लिफ्ट में ना मेरी एक सहेली मिल गयी थी। उससे बात करने में लेट हो गया।
क्या उमा दीदी तुम्हारा रोज कुछ ना कुछ बहाना रहता है। मैंने तुम्हें बताया है ना कि मुझे ऑफिस के लिए लेट हो जाता है। तुम क्यों लेट कर देती हो ? मेरा काम ज्यादा जरूरी है या तुम्हारी सहेली से बात करना !
"माफ करना, मैडम जी, वह क्या है ना, मेरी सहेली कुछ परेशान थी और रो भी रही थी, इसलिए मुझे अकेला छोड़ कर आना उसे सही नहीं लगा।
'अच्छा जी, अब आपकी सहेली को क्या हो गया जो रो रही थी ?
मैडम जी बताने वाली बात तो नहीं है, लेकिन बताती हूँ, मेरी सहेली ने दूसरा घर बसाया है, उसका जो दूसरा पति है ना, वह अपनी बेटी को छोड़ता ही नही। यहाँ तक कि रात में भी उसके साथ ही रहता है।
क्या मतलब है उसके साथ रहता है ? उसका पिता है, अच्छी बात है ध्यान रखना ही चाहिए बच्चों का।
नहीं मैडम जी, आप मेरी बात नहीं समझ रही है। 'रात में साथ रहने का मतलब यह है कि, बेटी सयानी हो रही है और माँ को घरों में काम करने के चक्कर में सुबह जल्दी उठ कर भागना होता है और दोपहर घर पहुँचती है। शाम को दो-चार घर में और काम पकड़ रखा है। जब वो शाम को घर पहुँचती है, तो पति की गाली गलौज, मार-पीट ये ही सब होता है, नशे में धुत्त घर आता है और उसके बाद अपनी बेटी के साथ ही वह सोता है और न जाने अपने गंदे हाथ कहाँ-कहाँ फेरता है। बेटी भी यूं ही कुछ 13-14 बरस की होगी। अब वह भी बड़ी हो रही है तो सब कुछ समझती है। कल वह अपनी माँ के गले लग रोने लगी, "आप मेरी सौतेली माँ हो तो क्या मुझे प्यार नहीं करती ? मेरी माँ होती तो शायद ये सब मेरे साथ न होता। अगर मुझे बेटी मानती हो तो मुझे अपने पास सुलाया करो, मुझे पापा के साथ नहीं सोना। माँ मैं तेरे साथ सुबह उठकर काम पर भी चलूँगी, तेरी हर बात मानूँगी, बस मुझे पापा के पास नहीं जाना।"
(अपनी बेटी की ऐसी बात सुन उमा की सहेली भी सुन्न हो गयी। उसे खुद भी समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें ?)
उमा दीदी की यह बात सुन, मेरे तो होश उड़ गए। मैं बैठ गयी चेयर पर, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसे क्या बोलूं।
उमा: क्या हुआ मैडम जी ? आप ऐसे क्यों बैठ गयी ?
'कुछ नहीं, तुम जल्दी से काम निपटाओ, मुझे लेट हो जाएगा ऑफिस के लिए पर सारा दिन आज मैं उमा दीदी की बतायी बातों में ही खोई रही। क्या यह सच में घोर कलयुग है ? आज हर रिश्ता इतना गंदा हो गया है ? ना कोई बाप, ना कोई भाई ना पड़ोसी, ना रिश्ते-नाते दार, ना चाहने वाला, क्या कोई सगा नहीं है किसी का यहाँ ? कैसी दरिंदगी ? यह कैसा घिनौनापन हमारे समाज में फैलता जा रहा है ! चाहे कोई छोटी जाति का है या पैसे वाला, आज हर किसी की बेटी रौंदी जा रही है। कभी घर के बाहर तो, कहीं कोई घर में ही बच्चों का शोषण कर रहा है। पर छी ! घिन आती है ऐसी घटना सुनकर, 'क्या एक जन्म देने वाला ही ऐसा कर सकता है ?'
दूसरा दिन-
उमा दीदी काम पर आयी और अपना काम कर रही थी पर मुझे बेचैनी हो रही थी। मैंने उनसे पूछा, "वो दीदी आपकी सहेली कैसी है ?"
उमा: कैसी होगी दीदी ! जो अपने पति को इस तरह से देख रही है, सौतेली ही सही लेकिन बेटी को बहुत प्यार करती है, उसकी खुद की कोई संतान नहीं है और उसके साथ ऐसा कुछ देख कैसी हो सकती है !
उमा दीदी, तुम लोग कोई कदम क्यों नहीं उठाते हो। उससे बोलो कि जाकर पुलिस केस करें।
उमा: मैंने भी यही कहा तो, उसने बोला क्या होगा पुलिस केस करके ? हमारी कौन सुनता है ?
'ऐसा नहीं है, तुम सब पहले ही डर जाते हो, उससे बोलो कि वह एक बार पुलिस स्टेशन जाए।
उमा: ठीक है मैडम जी, मिलती है तो मैं उसे जरूर बोलूँगी।
पाँचवें दिन-
मैडम जी, मेरी वो सहेली, जिसे मैं बता रही थी, आपकी बात कही मैंने, समझाने पर मान गयी और पुलिस स्टेशन में जाकर रिपोर्ट लिखवा दी। रात ही उसके घर पुलिस आकर उसके पति को चार लाठी भी मारी, साथ ही खींचकर पुलिस स्टेशन भी ले गयी। आज उसकी बेटी के चेहरे पर जो खुशी दिख रही थी ना, सच बड़ा सुकून हो रहा था पर सच में मैडम जी कितना गंदा हमारा समाज हो गया है। हम भी किस पर भरोसा करें। उमा दीदी की बात सुनकर मुझे भी थोड़ा सुकून आया, चलो कुछ तो सही हुआ। शायद आज उमा की वो सहेली और उसकी बेटी चैन की नींद सोएंगे।
करीबन डेढ़ दो-महीने बाद-
उमा दीदी ने फिर से खबर दी कि, 'मैडम जी' मेरी वो सहेली अपनी बेटी को लेकर अपने गाँव चली गई है। उसने कहा कि, 'शायद मेरे और मेरी बेटी के लिए यही अच्छा है कि हम गाँव में रहे। भले ही रूखा-सूखा खाकर पेट भर लेंगे, लेकिन ऐसे इंसान के साथ जीवन बिताना सही नहीं, न मेरे लिए और न हीं मेरी बेटी के लिए।'
मुझे ये तो नही पता कि क्या ये निर्णय सही है या नहीं पर आज एक सौतेली माँ ने, माँ के दिल से सोचा और अपनी बेटी के हित मे निर्णय लिया। अपनी बेटी को लेकर उसके भविष्य को बचाते हुए इस काल से दूर हो जाना ही अच्छा है।
