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बाल हठ

बाल हठ

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"नहीं पहनूँगी,नहीं पहनूँगी ।मै ये फ्राक नही पहनूँगी।"

तीन साल की मिनी जोर जोर से पैर पटक रही थी

। "बेटा कितनी गंदी हो गई है ये।हम तुम्हे ये सुन्दर सी परियों वाली फ्राक पहनाएंगे।परी लगोगी,है न दादी"

रोमा ने अपनी सास से समर्थन मांगा ।

"नहीं मम्मा मुझे यही पसंद है"

"तब तो तुम अपनी फ्रेंड की बर्थडे मे न जा पाओगी"

"मै तो जाऊंगी,और यही पहन कर जाऊंगी"

पैर पटकना,रोना ,चिल्लाना यथावत था।बस ज़मीन पर लोटना बाकी था। रोमा हताश,थक कर बैठ गई।मिनी आंसू बहाती रही,।

"मिनी एक बात बताये"

अब दादी बोली

"ऐसा लग रहा है ,तुम्हारे बाल सफेद हो रहे है"

मिनी चुप,भागकर आईने मे अपने बालो पर हाथ फेरने लगी,।

"नई तो दादी।ये तो काले है"

"देखो तुम्हारे बाल काले,मम्मा के भी बाल काले,बताओ क्यों?"

"क्यों" क्योंकि तुम्हारी मम्मा कभी जिद नही करती थी।बड़ौ की बात मानती थी।

"पर दादी आपके बाल तो सफेद है"

"यही तो,हम बचपन मे बहुत जिद्दी थी।अपनी माँ की बात नहीं मानती थी,हमारे बाल सफेद हो गये।

मिनी चुप,कुछ सोचने लगी

"मम्मा,परी वाली फ्राक पहना दो मुझे"

रोमा और दादी दोनो मुस्करा दी।


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