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Sunita Chavda

Abstract Romance

4.3  

Sunita Chavda

Abstract Romance

एक दूजे के लिए

एक दूजे के लिए

3 mins
528


खुलती है जब मेरे घर के सामने वाली खिडकी कभी,

अनायास ही नजरे मेरी उधर चली जाती है,

ऐसा चहेरा नजर आता उसमे,

जो देखा ना मैने पहले कभी,

तब एक पिक्चर कि तरह,

 साफ नजर आता है उसमे मुझे,


होती रहती है अन्दर कोई न कोई हलचल,

सब कुछ भूलकर निहारता रहता हूँ मैं उस तरफ,

अब तो ये दिवाना दिल भी कभी कभी जाता है मचल,

इन्ही ख्यालों मैं डूबे हूँए खलल पडता है जब,

खट् कि आवाज से बन्द होती है वो खिड़की,

संभाल पाता हूँ मैं खुद को मुश्किल से,

बैचेन मुझे करके मेरा सब कुछ चुरा ले गई वो लडकी,

बेकाबू है आज दिल हाल उसको मेरा बताने के लिये,

ये खत उस तक पहूँचाना हैं,


डर है मन मे कही प्यार मेरा ठुकरा ना दे,

बेखबर है वो मुझसे दिल उसका अब तक मुझसे अन्जाना है,

जवाब का मेरे आज तक है मुझे इन्तजार,

गुजर गये है कितने ही दिन लेकिन तब से ही ना खुली,

ये खिडकी और ना नजर आया उसका चहेरा,

लेकिन मैंने कभी अनदेखा नहीं किया उस खिडकी को,

हर पल उस तरफ टकटकी लगाए रहती है मेरी नजरें,


लेकिन वहाँ कि खामोशी के साथ दिखाई देता है मुझे सिर्फ अन्धेरा,

सब्र का बान्ध टूट जाता मेरा आज तभी मुझे लगा उधर कोई आहट हूँई हैं,

खुशी से बाग-बाग हो उठा मेरा मन जब मैंने उसको मेरी तरफ निहारते देखा,

मानो इशारा कर रही हो वो मुझे अपने पास बुलाने का,

इसी क्षण कि तो प्रतीक्षा थी अब तक दौडकर,

आ पहूँचा हूँ मैं उसके पास और अब बैठे वहाँ से,


देख रहा हूँ मैं अपने घर को जहाँ से पार करी,

मैने यहा तक आने के लिये वो लक्क्षमण रेखा,

मन कि मुराद पूरी हो गई हैं आज फिर भी,

 विश्वास नहीं है मुझे देख रहा हूँ मैं उसे दूर से मुस्कुराते हूँए,

बढ रही है वो मेरी ही तरफ हाथ मे लिए चाय कि प्याली

संभाला है अब मैने खुद को शायद होश नहीं था पहले मुझे,

अब मुझसे थोड़ी ही दूर वो बैठी है कैसे कहूँ मैं कुछ उसे,


मैं तो खुद हूँ उसका सवाली,

चाय रखकर वो टेबल पर भूल गई थी शायद,

किन्ही ख्यालों मे हो गई थीं वो गुम,

तन्द्रॉ जब टुटी उसकी माफी मांंगी उसने मुझसे,

और आग्रह करके थमा दी उसने चाय कि प्याली मेरे हाथो मे,

मोका यही था तब मैंने पकड़ लिया उसका हाथ,

खलबली मची थी दिल मे शायद तभी छूट गई प्याली मुझसे,


कहा मैंने उससे अब कर भी दो दूर तुम ये दुरिया,

सोया नहीं हूँ अब तक मैं कितनी ही रातो से,

अब आगोश मैं वो मुझे अपने लेकर रो रही है मेंरे कंधो 

पर सर रखकर,

आसूँ तो आज मेरी आँखों.मैं भी है वो खुशी के हैं या लम्बी जुदाई के,

हालत दोनों कि ही एक जैसी हैं, दिल मेरा कहता है ,

कितना अनोखा हैं हम दो प्रेमियो का ये मिलन,

जाने कब तक खोये रहे हम भावुकता मैं संभले तब,

हमने खूब किए गिले शिकवे अब तक नही मिल पाने के,

अब लगता है जैसे हम बने है एक दूजे के लिए ही


सब कुछ मिल गया है हमको,

अब सार्थक हो गया है हमारा ये जीवन।


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