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हिम स्पर्श - 04

हिम स्पर्श - 04

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वफ़ाई पर्वत को सब कुछ बताने लगी, ”तीन दिन पहले, मैं अपने काम में व्यस्त थी तब ललित ने मुझे बुलाया।“

“वफ़ाई, तुम्हारे लिए एक महत्वपूर्ण अभियान है। इस दैनिक पत्र के तस्वीर विभाग की तुम प्रमुख हो, तुम सक्षम हो और ऊर्जा से भरपूर हो। मेरा विश्वास तुम पर है।“ ललित के अधरों पर स्मित था।

”कैसा अभियान है ? क्या योजना है ?”वफ़ाई उत्साहित हो गई।

“तुम सदैव कुछ नया करती रहती हो। तुम्हारे अंदर कुछ विशेष बात है। तुम सामान्य सी लग रही बात को भी भिन्न एवं विशेष रूप से प्रस्तुत करती हो।“

“मेरे लिए यह केवल व्यवसाय ही नहीं अपितु मेरा प्रेम है, मेरी धुन है।“

“तभी तो, इतने अल्प समय में कई वरिष्ठ लोगों को पीछे छोड़ कर चौबीस साल की आयु में ही इस विभाग की प्रमुख बन चुकी हो।“

“ठीक है, जी। चलिये, हम जो बात...” वफ़ाई को ललित द्वारा उनकी आयु बताना उचित नहीं लगा। वह कुर्सी से उठी और खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई।

“मुझे विश्वास है कि तुम उस कार्य को पसंद करोगी। तुम उसका पूर्ण आनंद उठाओगी। इस कार्य के लिए मैंने तुम्हें पसंद किया है।“ ललित ने वफ़ाई को प्रोत्साहित किया।

वफ़ाई ने जवाबी स्मित दिया।

“देश के पश्चिम भाग में कच्छ नामक क्षेत्र है। विस्तार की दृष्टि से देश का सबसे विशाल जिला है। वहाँ विशाल मरुभूमि भी है। मरुभूमि का भी अपना सौन्दर्य होता है।“ ललित ने वफ़ाई की तरफ देखा।

वफ़ाई शांत थी, खिड़की से बाहर दूर सुदूर पहाड़ियों को देख रही थी, स्थिर थी।

“वहाँ एक अदभूत घटना होती है जो विरल भी है। उसे देखना, उस अनुपम क्षण को अपने कैमरे में कैद करना, कुछ अनन्य ही अनुभव होता है। जब तुम यह काम कर लोगी तो वह मनभावन कविता बन जाएगी। तुम यह सब करने जा रही हो।“ ललित ने कहा, ”हाँ, वफ़ाई, तुम ही वह व्यक्ति हो जो यह सब करने जा रही हो।“

वफ़ाई अभी भी किसी प्रकार से आंदोलित नहीं हुई। उसने ललित को भाव शून्य दृष्टि से देखा। वफ़ाई की इस मुद्रा को देखकर ललित विचलित हो गया।

“वफ़ाई, तुम कोई प्रतिक्रिया क्यूँ नहीं दे रही हो ? तुम हो कहाँ ?” ललित ने उसका ध्यान खींचने की चेष्टा की।

“मैं यहीं हूं। आप के शब्दों को ध्यान से सुन रही हूँ।“

“तो क्या तुम उस घटना के विषय में जानने को उत्सुक नहीं हो ? उस यात्रा के विषय में, उस अभियान के विषय में ?”

“जब सब कुछ निश्चित हो गया है, मुझे केवल उस पर कार्य करना है, तो मेरे पास प्रतिक्रिया के लिए अवसर बचा ही नहीं है।“ वफ़ाई निस्पृह हो गई।

ललित ने कॉफी के दोनों कप टेबल से उठाए और वफ़ाई के समीप गया। एक कप वफ़ाई को दिया।

“ऐसी बात नहीं है। वास्तव में तुम इस कार्य के लिए सबसे योग्य हो, इसीलिए मैंने तुम्हें पसंद किया है।“

“मान लेती हूं।“ वफ़ाई ने कॉफी का पहला घूंट पिया। ललित का तनाव कम हुआ।

“चलो मैं विस्तार से बताता हूँ।“ ललित ने कॉफी टेबल पर छोड़ दी और खुला हुआ लेपटोप उठा लाया।

”ठंड की ऋतु में पुर्णिमा के दिन वहाँ एक अनुपम घटना होती है। पश्चिम की तरफ सूर्यास्त होता है तब सूर्य पूरे कद का होता है, बड़ा एवं विशाल। पूर्व में चंद्रोदय होता है। चन्द्र भी सूर्य की भांति पूर्ण और विशाल। इन दोनों को हम एक साथ देख सकते हैं। एक पश्चिम में, पूर्ण लाल। दूसरा पूर्व में, पूर्ण श्वेत। सूर्य क्रोधित एवं उष्ण तो चन्द्र शांत एवं शीतल। दोनों का एक ही समय पर, एक ही स्थान पर अस्तित्व होता है, किन्तु एक दूसरे से विपरीत। एक अदभूत, विस्मय से पूर्ण, मनोरम्य दृश्य।“ ललित उत्साह से भरा था।

वफ़ाई शांत खड़ी सब देख रही थी, सुन रही थी। वफ़ाई एवं ललित दोनों एक साथ थे, एक सूर्य था तो दूसरी चंद्रमा।

“तुम उस क्षण की तस्वीरें खींचोगी। अपनी कला से कैमरे में कैद करोगी। तुम उसकी कहानी बनाओगी।“ ललित अत्यंत उत्साहित था।

“हाँ, यह अदभूत है, मुझे पसंद आया।“ वफ़ाई ने कॉफी पूरी कर ली। ललित ने गहरी सांस ली।

“तो तुम्हें कल निकलना होगा। दो हवाई टिकिट तैयार है। एक तुम्हारे लिए, दूसरी अंकुश के लिए।“ ललित ने बताया।

“यह प्रोजेक्ट के लिए आपने मुझे ही क्यूँ चुना, जो इतनी दूरी पर है ?” वफ़ाई ने संदेह किया।

“मैं पहले ही बता चुका हूँ कि तुम में प्रतिभा है और तुम यह कर सकती हो।“

“आप पक्षपाती हैं। आप मुझे दूर भेज कर दंडित करना चाहते हो जिसका कारण सर्व विदित है।“

कुछ दिन पहले घटी घटना, ललित और वफ़ाई दोनों को, याद आ गई।

ललित ने एक पार्टी रखी थी। अनेक जाने माने व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया था जिसमें सोहेल भी था। सोहेल प्रभावशाली स्थानीय व्यक्ति था।

पार्टी में वफ़ाई तस्वीरें ले रही थी। वफ़ाई अपने कार्य में मग्न थी, अपने कार्य को समर्पित थी। उत्तम से उत्तम तस्वीर के लिए वह जमीन तक झुक भी जाती थी जिससे उसके कपड़े मलिन हो गए थे, किन्तु वह अपने कार्य पर ही ध्यान दे रही थी।

सोहेल की दृष्टि वफ़ाई को, वफ़ाई के सौन्दर्य को देख रह थी। वफ़ाई के शरीर के प्रत्येक घुमाव का पीछा कर रही थी। वफ़ाई को भी यह ज्ञात था कि सोहेल की दृष्टि का लक्ष्य कहाँ था। किन्तु वह अपना काम करती रही।

पार्टी सम्पन्न हो गई। सभी अतिथि जाने लगे। कुछ विशेष अतिथि, सोहेल सहित, ही वहाँ थे।

वफ़ाई ने ललित और सोहेल की विशेष तस्वीरें भी खींची।

सोहेल वफ़ाई के समीप आया,”आपने जो तस्वीरें ली है उसे मैं देख सकता हूँ ?” सोहेल ने पूछा।

“श्रीमान, यह सब देखने के लिए आप को कल तक प्रतीक्षा करनी होगी। कल की आवृति में यह सब...” वफ़ाई ने सस्मित कहा और दो कदम पीछे हट गई।

सोहेल समझ गया कि वफ़ाई उसे टाल रही है।

“हाँ, मैं कल देख लूँगा। आओ एक सेल्फी लेते हैं।“ सोहेल ने प्रस्ताव रखा।

वफ़ाई ने सोहेल का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। सोहेल निराश हो गया। वफ़ाई चली गई।

सोहेल को वह स्वयं का अपमान लगा। उसने यह बात ललित को बताई। ललित ने वफ़ाई की तरफ से क्षमा मांग ली।

उस दिवस से ललित वफ़ाई पर क्रोधित था।

“वफ़ाई, मैं पक्षपाती नहीं हूँ। यह कार्य तुम्हें तुम्हारी क्षमता के आधार पर ही दिया गया है।“ ललित ने कहा।

“यदि ऐसा ही है तो मेरी कुछ बातें माननी पड़ेगी।“

“कौन सी बातें ?”

“प्रथम, मैं यह कार्य अकेली ही पूर्ण करूंगी। दूसरी, मैं हवाई यात्रा नहीं करूंगी किन्तु मेरी जीप से करूंगी। तीसरी, मेरी जीप मैं ही चलाऊँगी, मुझे कोई साथी नहीं चाहिए। चौथी, यह कार्य के पूर्ण करने के लिए कोई समय सीमा नहीं रहेगी।“ वफ़ाई ने ललित की तरफ देखा।

“यह सभी अस्वीकार्य है। तुम नहीं जानती कि तुम क्या मांग रही हो। तुम...”

“मैंने मेरी बात रख दी है। निर्णय आप को करना होगा।“ वफ़ाई ललित के कक्ष से बाहर निकल गई।

ललित वफ़ाई को जाते हुए देखता रहा। खुलकर बंध हुए द्वार ने अनेक संकेत दे दिये, जिससे ललित विचलित हो उठा।

ललित उस कार्य को पूरा करवाना चाहता था जो व्यावसायिक नीति का भाग था। उस ने स्थिति की समीक्षा की। वरिष्ठ सहयोगियों के साथ सारी बातों पर चर्चा की। सभी ने साथ मिलकर निर्णय किया। वफ़ाई को बुलाया गया।

“वफ़ाई तुम्हारी सभी बातें मान ली गयी है। किन्तु स्मरण रहे कि मुझे श्रेष्ठ परिणाम चाहिए।“ ललित ने कुछ कागज वफ़ाई को सौंपे,”अभियान कि सफलता के लिए शुभकामना।“

“और देख लो मैं इस यात्रा पर निकल चुकी हूँ, मित्र पर्वत।“ वफ़ाई ने पानी पिया, गहरी सांस ली।

सामने खड़ा पर्वत वफ़ाई की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था।

“तो यह बात है।“ पर्वत ने कहा।

“हाँ, यही बात है। अब तो मुझे जाने दो।“ वफ़ाई ने विनती की।

“सखी वफ़ाई, अब तुम जा सकती हो। तुम्हारा मार्ग खुला गया है।“ पर्वत की एक ठंडी लहर वफ़ाई को छू गई।

“बहन जी, मार्ग आंशिक रूप से खोल दिया गया है। आप आगे जा सकती हो।“ एक सैनिक ने आकर वफ़ाई को सूचना दी।

“जय हिन्द।“वफ़ाई ने सैनिक का अभिवादन किया।

“वफ़ाई, मुझे तुम्हारा पुरुष मित्र बना लो।“ पर्वत ने कहा।

“अवश्य। आज से तुम मेरे पुरुष मित्र और मैं तेरी स्त्री मित्र। किन्तु अभी मुझे जाना होगा, लौटकर आने पर खूब रोमांस करेंगे।“ वफ़ाई ने पर्वत को शृंगारिक स्मित दिया।

वफ़ाई जीप की तरफ बढ़ी।

”तुम कई दिनों के पश्चात लौटोगी। हो सकता है कि तुम्हें कोई पुरुष मित्र मिल जाए। यदि कोई मिल जाए तो।… “

“क्या तुम्हें ईर्ष्या हो रही है ?” वफ़ाई ने मुड़कर पर्वत की तरफ देखा। वफ़ाई की आँखों में लज्जा थी। उसने अपने अंदर कुछ अनुभव किया। उसके ह्रदय की घाटी में कुछ प्रतिध्वनित हुआ। उसकी नसों में मीठी लहर दौड़ने लगी। उसका ह्रदय कोई अज्ञात सा गीत गाने लगा।

“नहीं तो। मैं कामना करता हूँ कि तुम्हें इस यात्रा में कोई मित्र मिल जाय।“

“धन्यवाद, मित्र।“ वफ़ाई भावुक हो गई।

“मेरा एक काम करोगी ?”

“अब क्या चाहिए ?”

“सुंदर नीले केसर के फूलों के साथ मेरी कुछ तस्वीरें ले लो।“

वफ़ाई ने पर्वत की मांग मान ली, अनेक तस्वीरें ली। पर्वत के साथ बीते सुंदर क्षणों को अपने अंदर समेटे हुए वफ़ाई यात्रा पर निकल पड़ी।


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