सरस्वती माँ
सरस्वती माँ
माघ महीने की शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी के नाम से मनाया जाता है। माना जाता है कि बसंत ऋतु की शुरुवात इसी दिन से होती है। इस दिन को बुद्धि, ज्ञान और कला की देवी माता सरस्वती की पूजा आराधना करने के दिवस के रूप में मनाया जाता है। माता सरस्वती को अच्छे व्यवहार, बुद्धिमत्ता, आकर्षण व्यक्तित्व व संगीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन मौसमी फूलों और फलों, चन्दन आदि से माता सरस्वती की पूजा की जाती है। प्राचीन समय में भारत और नेपाल के लोगों का ये पसंदीदा मौसम हुआ करता था। जब फूलों पर बहार आ जाती, गेहूं की बालियाँ खिलने लगती, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाते और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगती तब वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवें दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें भगवान विष्णु और कामदेव देवता की पूजा की जाती थी।
यूं तो माघ का ये पूरा महीना ही उत्साह देने वाला है पर बसंत पंचमी का पर्व भारतीय जन जीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान की देवी और कला की देवी माता सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और हिन्दू धर्म संस्कृति को मानते हैं, वे इस दिन माँ शारदे की पूजा-अर्चना कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों के लिए इस दिन का उतना ही महत्व है जितना विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का हैं। चाहे वो कवि हो या लेखक, गायक हो या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार सब दिन का आरम्भ अपने उपकरणों की पूजा और माँ सरस्वती की वंदना से करते हैं।
