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अटूट रिश्ता

अटूट रिश्ता

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उसने वादा किया था, मेरी बेटी बारहवीं पास होगी तभी घर का काम छोड़ेगा . . थक चुका था वो भी ! बतौर सेवक अपने जीवन के सुनहरे वर्ष उसने माँ बाबूजी के सुपुर्द कर दिए थे . . 41 वर्ष कम नहीं होते ! जब गाँव से आया, ठीक से हिंदी भी ना बोल पाता . . माँ बाबूजी का स्नेह विश्वास, हम भाई बहनों का अपनापन उसके लिये अमूल्य था . . पड़ोसियों में अत्यंत प्रिय ! सभी उसे सीता भैया बुलाते . . घर के बच्चे मामा और काका ! मेरी बेटी ने अलग नाम दे डाला - सीता जी . . वो थी भी सबसे ज़्यादा क़रीब . . सीता जी नौकर नहीं , घर के सदस्य थे !! अचानक मेरी माँ के चल बसते ही वो टूट सा गया, मन नहीं लगता उसका . .अपने घर जाना चाहता, वापस गाँव ! खेती बाड़ी . . अपने लोगों के बीच !! पर जा कहाँ पाया . . बीमारी ! रिपोर्ट में टी बी . . अब वक्त था कि हम उसकी सेवा करें . .डाक्टर ने चार माह पूरी देखभाल की हिदायत दी, दो माह बीते, वो स्वस्थ होने लगा और मैं आशान्वित ! रोज़ सुबह शाम पार्क के चक्कर लगा आता . . मैं खुश थी, सीता जी ठीक हो रहे थे . . हँसने बोलने लगे . .अचानक जानडिस ने धर दबोचा . . टी बी और जानडिस, एक दूसरे के विपरीत !! मैं चिंतित थी, खान पान दवा सब अलग, क्या होगा ! पर उसे आश्वस्त करती, ठीक हो जाओगे . . पर अपने चेहरे का भाव कहाँ छुपा पाती मैं . . धीरे धीरे सूख कर काँटा हो चला सीताराम . . मैं चाह कर भी कहाँ रोक पाई ! मेरी बेटी की बारहवीं कक्षा तक वो नहीं रुक पाया किंतु मैं भारी मन लिये उसकी बारहवीं तक ज़रूर रुकी रही . . .


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