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बारूद की बू

बारूद की बू

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पुरानी दिल्ली के इस घर के आसपास जवाहर अक्सर दिखता था, पर इतने सालों में कभी सामने नहीं आया। शमी ने भी कई बार कहा, स्कूल के बाहर एक बैसाखी वाले प्यारे से चाचू उसे दूर से देखते रहते हैं। पर आज वो सानिया का पीछा करता हुआ उसके घर तक आ पहुँचा। यही नहीं, उसे किनारे कर अन्दर भी दाखिल हो गया। बारूद की बू तेज़ हो गई।

"मैं ये क्या‌ सुन रहा हूँ ? तुम शमी को लाहौर भेज रही हो ? यहाँ पढ़ तो रहा है अच्छे से, तो फिर...?"

"उसके अब्बा उसे वहाँ पढ़ाना..."

वो काँप रही थी। जवाहर ने उसे पकड़ कर सोफे में बैठा दिया। "लेकिन पाकिस्तान में ! ऐसे मुल्क़ में क्या तकदीर बनेगी ? और हर छः महीने में तुम्हारा शौहर आता तो‌ रहता है, फिर क्यों उसकी जान निकली जा रही है ?"

सानिया सुबक रही थी।

"तुम भी जा रही हो ?" सानिया ने ना में सिर हिलाया। जवाहर ने उसके बगल में बैठ उसके आँसू पोछे। "सान, लगता है समय आ गया है उसे बताने का कि..."

ओफ्, फिर बारूद की वही महक ! सानिया ने एक हताशा की साँस छोड़कर जवाहर से कहा, "तुमसे इस वादाखिलाफ़ी की उम्मीद न थी। तुमने अपने पापा से क्या वादा किया था ?" ओह, ये बारूद पीछा नहीं छोड़ती ! उफ़ ये यादें..."

ज़्यादातर पंडित या तो मारे जा चुके थे या फिर घाटी छोड़ चुके थे। जवाहर के पापा को इंडिया चले जाने की कई धमकियाँ मिली, पर अब्बू ने यकीन दिलाया, कुछ नहीं होगा। ...उफ ! सालों से पड़ा कोहरा छँट रहा था। ...जवाहर के साथ स्कूल जाना, साथ साथ शिकारा चलाना, और कितना कुछ! फिर जवानी की दहलीज, उसका प्रेगनेंट हो जाना ! ...अम्मी और चाची तो लड़ पड़ीं थी। पर अब्बू ने पहल की, चाचाजी के गले लगकर कहा, अरे टिक्कू साहब, हम दोनों पहले कश्मीरी है, बाद में मुसलमान या पंडित। बच्चों का निकाह पढ़वा के दोनो घर एक करवा लेंगे। देखते हैं कौन तोड़ता है हमारी दोस्ती! लीजिए कहवा ठंडी हो रही है।

मेहंदी वाली रात बम की आवाज़ से नींद खुली। धुँआ छँटा तो दिखा, टिक्कू चाचा का घर उड़ चुका था, चाचा और चाची खून से लथपथ पड़े थे, जवाहर को एक खरोंच भी नहीं आई, बस एक पैर कहीं नहीं दिख रहा था। बारूद और जले माँस की बू फैली हुई थी।

चाचीजी को मौका नहीं मिला पर चाचाजी और दो दिन ज़िन्दा रहे। आखिरी सांस लेने से पहले उन्होंने उसका निकाह कहीं और कराने के लिए अब्बू को मना लिया। और जवाहर से वादा लिया कि वो सानिया के शौहर से उनके टूटे रिश्ते का ज़िक्र नहीँ करेगा। निकाह के वक़्त भी जवाहर अस्पताल में था। ...और फिर सात साल हो गए, पर सानिया को वीज़ा नहीँ मिला, क्योंकि अब्बू को वो लोग आज भी गद्दार मानते हैं! ओफ्फो, ये बारूद की महक और कितने साल पीछा करेगी !

जवाहर अपनी बैसाखी सम्हालकर उठा, एकबार जी भरके अपनी सान को देखा, और दरवाज़े की ओर बढ़ गया। सानिया के दिल का ज़लजला ज़ोरों पर था। ऐसा लगा, जवाहर फिर कभी नहीं दिखेगा। साथ नहीं, पर आसपास तो हमेशा था। पर अब...! या परवरदिगार, रस्ता दिखा !

जैसे डूबने वाला सहारे से जकड़ता है, सानिया ने अचानक दौड़कर उसे जकड़ लिया। "जवाहर, मुझे तलाक मिल जायेगा।"

जवाहर को एकबारगी अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। शमी भी अंदर से भागकर आया और जवाहर से लिपटकर बोला, "बैसाखी वाले चाचू, मत जाओ ना।"

सानिया ने शमी को प्यार से कहा, "चाचू नहीं, पापा।"

जवाहर की आँखें खुशी से चमक रहीं थी। बैसाखी एक ओर फेंक कर शमी और सानिया से लिपट गया।

सालों में पहली बार सानिया ने महसूस किया, हवा में बारूद की बू नहीं थी।


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