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पढ़ती तो ...

पढ़ती तो ...

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परिमल कार पार्क करके लाॅक कर रहा था कि किसी ने उसकी कमीज़ खींची। एक ८-१० साल की लड़की थी।

५ रुपये दोगे ?

उसने मुस्कुराते हुए पूछा, ५ रुपये से क्या करोगी ?

भूख लगी है।

५ रुपये में खाना मिल जायेगा ?

थोड़ा तो मिलेगा।

पूरा कितने में आएगा ?

आँखों में सपने सजाये उसने कहा, २० रुपए में। चार रोटी, दाल और सब्जी। दोगे ?

परिमल बटुआ निकालते हुए बोला, चलो सामने वाले ढाबे में, तुम्हें खिलाता हूँ। लड़की उसके साथ हो ली। अचानक फिर से उसके कमीज़ का कोना पकड़के रोक लिया।

इतने पैसे दोगे ? २० रुपये !

हाँ।

तो फिर इस पैसे से आटा खरीद दो न। सब लोग भूखे हैं।

सब कौन ?

माँ, नानी और भाई। माँ लंगड़ी है, भाई छोटा है और नानी बीमार है।

और बाप ?

कभी देखा नहीं।

पढ़ती नहीं हो ?

वो हँस पड़ी।

पढ़ती तो खाती क्या !

किराने की दुकान से २ किलो आटा और दाल लेकर उसे देते हुए परिमल याद करने लगा, जब वो ८-१० वर्ष का था तो उसकी चाहतें, उसके सपने, उसकी दुनिया कितनी अलग थी।

उस दिन एक प्रतिध्वनि ने देर रात तक उसे जगाये रखा।

पढ़ती तो खाती क्या !

पढ़ती तो खाती क्या !

पढ़ती तो खाती क्या !


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