Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Vrajesh Dave

Drama Romance

3.4  

Vrajesh Dave

Drama Romance

हिम स्पर्श- 38

हिम स्पर्श- 38

5 mins
543


38

“तुम मुझे चित्रकला कब सिखाओगे?” वफ़ाई ने पूछा।

“वफ़ाई, मुझे विस्मय है कि तुम अभी भी सीखना चाहती हो।“

“मैं मेरा वचन पूर्ण करना चाहती हूँ।“

“तुम उतावली हो रही हो।”

“कोई संदेह, जीत ?”

“जिस से तुम यहाँ से अति शीघ्र भाग सको।’

“मैं ना तो यहाँ से, ना ही तुम से भागने वाली हूँ।“

“तो इतनी अधीर क्यों हो ? इतनी उतावली क्यों हो ? तुम्हारे पास भी समय नहीं बचा क्या ?”

“मैं ? नहीं तो ? किन्तु मुझे ज्ञात है कि तुम्हारे पास समय नहीं बचा है।“

“मैं नहीं जानता।“ जीत ने गहरी साँस ली।

“तुम भली भांति जानते हो, जीत।“ वफ़ाई ने कहा, जीत ने उत्तर नहीं दिया।

वफ़ाई चित्राधार के संग व्यस्त थी। जीत के निर्देशों का वह अनुसरण कर रही थी। चित्रकारी सीखने का वह प्रथम अभ्यास था, जीत के शब्दों को अच्छे शिष्या की भांति सुनती रही वफ़ाई।

अनेक प्रयास के अंत में वफ़ाई कुछ आकारों को आकर देने में सफल रही। वफ़ाई ने उसमें रंग भर दिये। अपने कार्य को वह उत्साह से देखने लगी। अपने कार्य से उसे प्रीत हो गई।

वह आनंदित थी, वह हर्ष से नृत्य करने लगी। वह चीखती रही, नाचती रही, हँसती रही। अंतत: रो पड़ी।

जीत वफ़ाई को देखता रहा। वफ़ाई उसे एक सुंदर बच्ची जैसी लगी। वफ़ाई की इसी मुद्राओं की जीत ने तस्वीरें खींच ली। वफ़ाई उस बात से अनभिज्ञ थी।

वफ़ाई की आँखों में विस्मय था जो जीत को आकर्षित कर रहा था।

“इन आकृतियों को देखो। कैसी लग रही है यह सब ? सुंदर है ना ?” प्रतिक्रिया की अपेक्षा वफ़ाई ने जीत को देखा किन्तु जीत वफ़ाई की मुग्धता में खो गया था। उसने वफ़ाई के शब्द नहीं सुने। वफ़ाई ने अपने शब्द पुन: कहे। जीत ने पुन: ध्यान नहीं दिया।

वफ़ाई जीत के समीप गई। जीत के कानों में चीखी।

“वफ़ाई, क्या कर रही...?”

“जीत, कल्पना के अपने विश्व को छोड़कर वास्तविक जगत में लौट आओ।“

“ओह।”

“छोड़ो सब, इसे देखो। यह सब मैंने किया है। यह आकृतियाँ, यह रंग, यह सब। हे गुरु, मेरे इस कार्य पर अपनी प्रतिक्रिया दो। इसका मूल्यांकन करो।“ वफ़ाई का हाथ चित्र पर था।

जीत ने उन चित्रों को ध्यान पूर्वक देखा। उसके मुख पर के भाव बदलने लगे।

वफ़ाई चिंतित थी। किसी बाल मंदिर के बच्चे की भांति भयभीत थी।

वफ़ाई को अपनी शिक्षिका याद आ गई। मिस रोजी, जिससे वह सदैव घृणा करती थी। तब वह तीसरी कक्षा में पढ़ती थी।

रोजी ने एक कविता पढ़ाई थी। उस कविता पर वह सभी विद्यार्थियों को प्रश्न करने वाली थी। वफ़ाई को कविता कभी पसंद नहीं थी। यही कारण था कि उसे रोजी भी पसंद नहीं थी।

वह कविता प्रकृति के सौंदर्य पर थी। सुंदर शब्दों से कवि ने प्रकृति का वर्णन अत्यंत रोचक रूप से किया था। अन्य बच्चे कह रहे थे कि रोजी ने उस कविता को सुंदर रूप से समझाया था। पूरे उत्साह से उस कविता को गाया था और सभी बच्चों से भी गवाया था। सभी रोजी के साथ गाते थे। वह सब कविता का आनंद उठा रहे थे। किन्तु वफ़ाई वह सब नहीं कर पाई।

वफ़ाई को कविता से घृणा थी क्यों कि वह सुंदरता का वर्णन तो कर रही थी किन्तु खाली शब्दों से वफ़ाई प्रकृति से जुड़ नहीं पा रही थी। प्रकृति के सौन्दर्य की अनुभूति नहीं कर पा रही थी। वफ़ाई शाला की दीवार से परे बिखरी प्रकृति में घूमना पसंद करती थी। उन दीवारों को लांघकर भाग जाना चाहती थी। पहाड़ों में, जंगलों में, झरनों में, नदियों में, बादलों में, हिम में, वह स्वयं को विलीन कर देना चाहती थी। भागने का वह सदैव प्रयास भी करती रहती थी किन्तु प्रत्येक बार रोजी उसे पकड़ लेती थी तथा शाला की दीवारों से बने कारावास में बंदी बना देती थी। बस यही कारण था कि वफ़ाई, रोजी से तथा कविता से घृणा करती थी।

रोजी ने सबसे प्रथम वफ़ाई की नोट ली। वह जानती थी कि वफ़ाई गृह कार्य कभी ठीक रूप से नहीं कर पाती। उसने वफ़ाई को समीप बुलाया। वफ़ाई के कदम भयग्रस्त थे। वह काँप रही थी। वफ़ाई की नोट देखने के पश्चात रोजी ने वफ़ाई को तीखी दृष्टि से देखा। वफ़ाई की नोट में कुछ भी नहीं था। वफ़ाई, रोजी के डाँटने से पहले ही रोने लगी। सभी बच्चे उसे ही घूर रहे थे। किन्तु सबसे भयावह दृष्टि रोजी की थी।

रोती हुई वफ़ाई विनती कर रही थी,”मुझे क्षमा करो। क्षमा करो। मैं कल गृह कार्य करके आऊँगी। क्षमा करो। क्षमा करो।”

वफ़ाई अभी भी यह शब्द बोले जा रही थी। हाथ जोड़े वह जीत के सन्मुख खड़ी थी। जीत स्मित कर रहा था।

“नहीं, कभी नहीं। तुम्हें कभी क्षमा नहीं दी जाएगी, वफ़ाई।“ जीत हँसने लगा।

वफ़ाई अभी भी रो रही थी। जीत ने उसे पानी दिया। वफ़ाई उसे एक ही घूंट में पी गई। वह जीत को देखने लगी। इधर उधर देखने लगी। वह हर दिशा, हर कोने में देखने लगी। कहीं रोजी नहीं थी, ना ही साथी विद्यार्थी थे, ना शाला थी ना कविता थी वहाँ।

वहाँ खुला गगन था, असीम मरुभूमि थी, जीत था।

वफ़ाई ने अपने विचारों को तथा कल्पनाओं को स्थिर किया। उसने कुछ क्षण व्यतीत होने दिये, जीत ने भी। जीत ने आँखों के द्वारा कुछ तरंग बहा दिये, जिसे देखकर वफ़ाई भय मुक्त हो गई।

“वफ़ाई, तुम्हारे प्रामाणिक प्रयास के कारण तुम चित्र बनाने में सफल हुई हो। अभिनंदन। तुमने सुंदर प्रारम्भ किया है।“

वफ़ाई की आँखों में आनंद के, सफलता के, संतोष के तथा जीत के द्वारा दी गई प्रेरणा के भाव मिश्रित अश्रु थे। वह कुछ भी नहीं बोल पाई। वफ़ाई के बालों की लटें हवा में उड़ रही थी, वह सब कुछ कह रही थी। जीत उसे सुनता रहा।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama