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ढाल

ढाल

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"एक जाम ज़िन्दगी के नाम !" कहते हुए रूचि ने शराब से भरे गिलास को शिखा के होठों पर लगाने को हाथ बढ़ाया तो शिखा ने रूचि का हाथ परे कर दिया। "तुम जानती हो ना मैं शराब नहीं पीती।" "क्या यार तुम भी" रूचि लड़खड़ाती जबान में बोलने लगी, ना तो तुम शराब पीती हो यार ना ही तुम्हारा कोई ब्वॉयफ्रेंड है, क्या खाक जीना है तुम्हारा भी, तुम तो मेरी जान अभी से जीवन को ढोने लगी, जीओ यार जीओ !" लड़खड़ा कर चलते हुए रूचि अपने बिस्तर की ओर बढ़ी तो शिखा ने जल्दी से उसे सहारा देते हुए बिस्तर पर लिटा दिया !

अपने स्टडी टेबल पर पड़े लैम्प को आन करके शिखा ने पुस्तक खोल ली। रूचि का अब यही रूटीन बन चुका था, मेरे हॉस्टल में आने पर सबसे पहले रूचि से जब मेरी मुलाकात हुई थी तो मैं जान गई थी, कि रूचि साफ दिल वाली लड़की है पर ये आदतें धीरे-धीरे जब पता चलती गईं तो मैंने सोचा कि इसकी तह में जरूर जाऊँगी और पता लगाकर रहूँगी कि रूचि जैसी लड़की पतन के रास्ते पर आखिर क्यों चल पड़ी। याद आ रहा था मुझे वो दिन जब पापा मुझे हास्टल छोड़ने आए थे तो बस इतना कहा कि, "बेटी तुम मेरा स्वाभिमान हो ये याद रखना," और मैं पापा की आँखो में बस देखती रह गई, ऐसे लगा जैसे वो मुझसे कोई वादा माँग रहे हों अनकहे शब्दों में और मैंने वो वादा कर लिया !

हास्टल में आने पर रोज नए अनुभव होने लगे। लड़कियों को देखती जो अपने भविष्य का निर्माण करने की बजाय अपने हाथों से ही भविष्य का गला घोटने में लगी थीं। समय बीतता गया और एक दिन क्लास में जाकर पता चला कि दो लैक्चरार छुट्टी पर हैं, वापिस अपने रूम मे आई तो देखा रूचि बोतल खोल कर बैठी थी, "ये क्या रूचि अब तुम दिन में भी," मैंने उसके हाथों से बोतल पकड़ते हुए कहा, "मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूँगी। "देख यार दो घूँट अन्दर जाने दे, उसके बाद जो पूछेगी ना उसका बहादुरी से जवाब दूँगी। "बहादुर और तुम !" मैंने रूचि से कहा, "तुम जैसा कायर तो मैंने कही नहीं देखा।न "एक तुम ही हो जो मुझे कायर कह देती हो बाकी लड़कियों को देखती हो ना कैसे डरती हैं मुझसे," रूचि ने बोतल मेरे हाथों से लेने की फिर कोशिश की।"

जानना चाहती हो ना कि मुझे शराब की लत क्यों लगी तो सुनो, "मैं भी तुम्हारी तरह शिखा यहाँ कालेज में कैरियर बनाने के सुनहरे सपने लेकर ही आई थी, लेकिन थोड़े दिनों बाद जो तथाकथित सम्पन्न वर्ग की सीनियर लड़कियों ने रैगिंग के नाम पर जो मुझे बेइज्जत किया, तो वो बेइज्जती दिल में घर कर गई, और ऐसी लड़कियों से मुकाबला करने के लिए जो हिम्मत चाहिए थी ना उसकी खुराक के रूप में मैंने शराब पीनी शुरू कर दी।" रूचि की आँखे नम हो चली थीं, लेकिन लगातार दिल का गुबार निकालते हुए बोली, "शिखा मैं जानती हूँ, तुम बहुत अच्छी लड़की हो जो मेरे जैसी लड़की की संगति में रहकर भी अपने चरित्र से ना डगमगाई, मैंने भी बहुत बार तुम्हारे जैसा ही बनने का सोचा लेकिन मैं नही बन पाई।" कहते-कहते रूचि लगभग रोने लगी। मैंने दौड़कर रूचि को गले लगाया ओर कहा रूचि इन किताबों की तरफ देखो जब तुम इन्हें अपने जीवन मे ढाल बनाकर चलोगी तो कोई भी इसे पार करके तुम्हे नुकसान नही पहुँचा सकेगा, बेइज्जत नहीं कर सकेगा, इन किताबों से मिलने वाले ज्ञान से ही तुम जीवन में आने वाली समस्या का बहादुरी से सामना कर सकोगी, बोलो बनाओगी ना इन्हें अपनी ढाल !"और रूचि की आँखों में बहती आँसुओ की धारा की तरफ जब मैंने देखा तो मुझे मेरे अनकहे शब्दो में माँगे गए वादे का प्रत्युतर "हाँ" में मिला !


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