जाल
जाल
वो अब उसे बिलकुल पंसद नहीं करती थी, ना उसे उसका छुना पंसद था ना ही उसकी बातें, कभी-कभी वो हैरान होकर सोचती कि कैसे वो उस के प्यार में पड़ गई।
पर वो उसे जैसे खोना ही नहीं चाहता था, वो हमेशा कहता, " तुम कितनी खूबसूरत हो, तुम मे जो आकर्षण है वो कहीं नहीं"
वो अक्सर उसे मिलने के लिऐ बुलाता, जब भी कभी वो इन्कार करती तब वो उसकी चिट्ठीयां और तस्वीरे सबको दिखाने की धमकी देता।
वो खुद को किसी जाल में फसा महसूस करती, दिन ब दिन उसके लिऐ ये सब सहना मुश्किल हो रहा था, "नहीं, मैं कोई उपभोग की वस्तु नहीं।" उसने फैसला किया, "अब मैं ये सब और बर्दाश्त नहीं करूगीं।" मुझे आज ही इस खेल को खत्म करना होगा।
वो उसके कमरे में तेजी से दाखिल हुई, उसकी आँखो में आँखे डाल कर दृढ़-निश्चय से बोल उठी, "कोई व्यक्ति अपनी एक गलती की सज़ा कब तक भुगतेगा, आखिर कब तक।"
उसकी आवाज जैसे फैसला कर चुकी थी। वो खामोशी से उसे देखता रहा, कुछ पल के लिऐ रूका, और फिर यकायक अलमारी की दराज खोली, उसके पत्र और तस्वीरें उसकी तरफ फेंक कर बोला, " कोई भी व्यक्ति अपनी एक गलती की सजा अब और नहीं सहेगा।"
स्तब्ध, बुरी तरह से चकनाचूर, उसकी प्रतिक्रिया पर हैरान सी, वो वापस आते ही कमरे में लगे अपने दर्पण के सामने जाकर खुद को देखते हुऐ खुद से बोल उठी,
"क्या मैं अब उतनी खूबसूरत, उतनी आकर्षक नहीं रही, जितनी कि पहले थी।" और वो फूट-फूट कर रो पड़ी।