Hardeep Sabharwal

Tragedy

4.8  

Hardeep Sabharwal

Tragedy

पशु और इंसान

पशु और इंसान

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सुबह दुकान का शटर खोला ही था कि सामने डेयरी वाली ग्वालन बोल उठी, " पिछली गली में रहने वाला रमेश है ना वो मर गया।"

"कौन रमेश ! वो जो रोज सुबह मंदिर का प्रांगण धोता है, भला चंगा तो था कल सुबह ही मिला था" मैंने हैरान होते हुऐ पुछा। 

" हां जी वही, कल शाम मोटरसाईकिल से जा रहा था कि एक सांड ने उसे पटक दिया, सिर दीवार में जा लगा और मौके पर ही मौत हो गई।" 

" ये म्यून्सीपैलिटी वाले कर क्या रहे है, सारे शहर में इन आवारा सांडो और कुत्तो का आंतक मचा है" साथ वाले मल्होत्रा जी बोल उठे। 

"जब से ये सरकार आई है तब से ही आवारा पशुओ का संकट गहरा गया है" शर्मा जी जो विपक्षी दल में निष्ठा रखते है सहज ही मुद्दे को राजनीतिक रंगत देते हुऐ बोल उठे। 

" ये शहर के लोग पता नहीं क्यों इस तरह इन पशुओं को गलियों मे फिरने के लिऐ छोड़ देते हैं, हमारे गाँवो में तो कोई आवारा पशु नहीं होता"। ग्वालिन ने मुद्दे को शहर बनाम गाँव करते हुऐ कहा।

"अब मेरा मुंह ना खुलवाइए बहन जी", मल्होत्रा जी खीझते से बोले," शहर वालो के पास खुद रहने को जगह नहीं पशु क्या रखेगें, ये सब आप गाँव वालों का किया धरा है, गाय को बछिया हुई तो पाल ली दूध देगी, और बछड़ा हुआ तो हांक दिया शहर की और बछड़ा घाटे का सौदा जो ठहरा।" इंसान के स्वार्थ की पराकाष्ठा को परिभाषित करते वो बोल उठे।

" सच में इन आवारा पशुओं ने जीना मुहाल कर दिया है" कुछ और आवाजें भी चर्चा में शामिल हो गई। 

मैं सोच रहा था कि लड़कियों को भ्रूण में ही कत्ल करने वाले इंसान के पास अगर गाय के बच्चे को लिंग जांच की भी कोई सुलभ तकनीक होती तो शायद एक भी बछड़ा जन्म ना ले पाता, सचमुच इंसान से बड़ा पशु कोई और नहीं।


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