जुदाई
जुदाई
"भगवती! यह समीर हमेशा तेरी तरफ देखता रहता है,आखिर यह चक्कर क्या है?".......मोहिनी अपनी परम मित्र भगवती से कॉलेज के मुख्य द्वार के पास पूछती है।
"मुझे क्या पता और वैसे भी..."........भगवती इतना बोली ही थी और मोहिनी बीच में रोकते हुए-
"हाँ-हाँ, समीर अच्छा लड़का है और तेरे मन में उसके लिए कुछ-कुछ होता है लेकिन क्या फायदा, तूं उसे अपने मन की बात बताती तो है नहीं।"
"देख यार इसमें हजारों प्रॉब्लम्स है, वर्ग,समाज और सबसे बड़ा धर्म..अब छोड़ ना....।"...मन मारते हुए भगवती बोली।
"भगवती, प्यार और सच अपना रास्ता बना ही लेते है। प्यार धर्म, समाज इन सब से भी ऊपर होता है।"......मोहिनी बोली।
"देख वैसे भी हमारे कस्बे में यह सब अच्छा नहीं लगता।"......भगवती बोली।
"देख मैं फिर बोल रही हूँ, प्यार- प्यार होता है और मैं भी तेरे साथ हूँ, तूं मन की बात बोल दे समीर को।".....मोहिनी ने कहा।
इस घटना को घटे लगभग 15 दिन बीत जाते हैं। एक दिन कॉलेज में इंटरवेल के समय समीर इधर-उधर ढूंढते हुए भगवती के पास आकर बोला-
"आई..आई..लव यू भगवती।"......समीर हिचकिचाते और नजरे चुराते हुए भगवती से बोला।
"छुट्टी के टाईम बात करते हैं अभी तुम जाओ।"...भगवती ने कहा। पास में खड़े सभी लोग इसी तरफ देखने लग जाते हैं।
"देखो मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और मुझे इस धर्म वग़ैरह से भी कोई आपत्ति नहीं है, बाकी तुम्हारी मर्ज़ी।".......समीर जल्दी-जल्दी बोला।
"मैंने बोला ना अभी तुम जाओ बाद में बात करते हैं।"......भगवती ने कहा।
"ठीक है...।".....समीर बोलते हुए मुहँ लटका कर वहाँ से निकल जाता है।
"तेरे प्रोब्लम क्या है..? अब तो उसने सामने से बोल दिया।".......मोहिनी ने भगवती से कहा।
"देख मैं भी जानती हूँ समीर अच्छा है, होशियार है पर मां-पापा को पता चला तो इस रिश्ते का क्या होगा..? तुने सोचा भी है।".....भगवती बोली।
"तो तुमने क्या सोचा..? भगवती?".....छुट्टि के समय समीर ने भगवती से कहा।
"समीर, तुम बहुत अच्छे लड़के हो पर तुम समाज,धर्म इन सब के बारे में भी जानते हो? पर मैं तुम्हें मना भी नहीं कर सकती।"......बोलते हुए भगवती की आँखों में पानी भर आया। इतना सुनते ही समीर खुशी से उछल पड़ा।
"इतनी खुशी समीर! सब्र करो अभी।".....मोहिनी ने समीर से कहा।
घर के आंगन में लगा टेलीफोन बजता है, भगवती तेजी से बढ़कर फ़ोन उठाती है।
"हेल्लौ।"...सामने से आवाज़ आती है।
"हाँ समीर बोलो।"...भगवती धीरे-से बोली।
"देखो भगवती हमारी दोस्ती हुए चार महीने हो गए, हम कॉलेज में भी मिलते हैं और आज तक कभी धर्म हमारे बीच नहीं आया मगर मैं आज हमारे शहर में धर्म के नाम पर दंगे होने शुरु हो गये हैं तो तुम अपना ध्यान रखना।".......सामने से समीर बोला।
"लेकिन..।".......भगवती।
"चल अब रखता हूँ।"........समीर बोला।
"भाईजान आपके लिए फ़ोन है।".......एक तरफ़ परेशान खड़े समीर को उसकी बहन ने आवाज़ दी। समीर ने जाकर फ़ोन लिया।
"हेल्लौ।"....सामने से आवाज़ आई।
"हाँ बोल अब्बास।"......समीर बोला।
"देख तूं हर जगह अपना पक्ष रखता है तो आज बाहर संभल के निकलना, वे लोग तुझे भी मारने पर तुले हैं...इंशाअल्लाह मैं तेरे पास जल्दी ही पहुँच जाऊँगा।".......सामने से अब्बास बोला।
"तू फ़िक्र मत कर अब्बास, कुछ नहीं होगा और मैने कभी कुछ गलत थोड़ी किया है।".......समीर बोला।
"देख हिंसा करने वाले सही और गलत नहीं समझते और तू एक बार कैसे भी भगवती से भी मिल ले।".......अब्बास ने कहा।
"ठीक है। रखता हूँ,अस्सलाम वालेकुम।".....कहते हुए समीर ने फ़ोन काट दिया।
समीर परेशान होकर घर से बाहर निकल जाता है, गली में थोड़ी दूर चलने के बाद पीछे से आवाज़ आती है-
"माना कि तुम और अब्बू हिंसा के खिलाफ हो लेकिन आज हमारे अस्तित्त्व पर खतरा है और तुम भी तो कॉलेज में नेता बनकर घूमते हो, आज तुम्हें हमारे साथ चलना होगा।"
"ठीक है भाईजान।"......कहते हुए समीर भी अपने भाई के साथ गाड़ी में बैठ गया।
थोड़ा आगे चलने पर उनकी गाड़ी के सामने उनके ही धर्म की हिंसक भीड़ तबाही मचा रही थी। यह देख गाड़ी रोककर सभी बाहर निकलते हैं और सभी उस भीड़ में शामिल हो जाते हैं लेकिन समीर बिना हिंसा किये वहाँ से मौका देखकर भगवती के घर की तरफ़ चल पड़ा।
"अरे रुकिये भाईजान, आप तो जानते ही है, मैं समीर हूँ।".....थोड़ा दूर चलने पर समीर ने अपने ही धर्म के एक युवक से कहा जो एक भीड़ के साथ उसे मारने पर उतारू था।
"अरे तुम, यह लो यह टोपी पहन लो।"...वह युवक बोला।
समीर टोपी पहन कर वहाँ से निकल जाता है।
थोड़ी ही देर में वह भगवती की कॉलोनी के पास पहुँच जाता है मगर कॉलोनी के अंदर जाना जान गंवाने से कम नहीं था।
"तुम अंदर कहाँ जा रहे हो।"....कॉलोनी की पहरेदारी कर रहे आदमी ने समीर से पुछा।
"भैया, मेरे कोई काम है और वैसे भी मैं आप का दुश्मन नहीं हूँ।"......कुर्ते और पतलून के बीच अपनी टोपी छुपाते हुए समीर बोला।
समीर जैसे-तैसे करके कॉलोनी में प्रवेश करता है।वह तेजी से बढ़ता हुआ भगवती के घर के बाहर पहुँच जाता है और दरवाजे की ओट से दबी आवाज़ में कहता है-
"ओय...सुन,...भगवती।"
"तुम यहाँ, समीर क्यों अपनी जान देने यहाँ तक आये हो, मैने बोला था मैं ठीक हूं, लेकिन तुम।".......भगवती तेजी से गलियारे में आकर बोली।
समीर भगवती का हाथ पकड़कर उसे खींचते हुए अपने गले से लगा देता है।
लगभग एक मिनट बाद बाहर समीर को मारपीट और तबाही की आवाजें आती हैं। समीर वहां से तुरंत भागकर बाहर जाता है.....।
आज 8 वर्ष बाद भी समीर का कोई पता नहीं है। भगवती आज भी समीर के ख़्वाब देखती है। रात-रात भर उसकी आँखों से आंसू आते रहते है।
"कौन था..जिसने धर्म के नाम पर दायरे और सीमायें बना दी? राजनीति अपने स्वार्थ के लिए क्यों हिन्दू-मुस्लिम करती रहती है।".........यह सवाल भगवती को दिन-रात कचोटते रहते हैं।