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Antra Bhilatiya

Romance

5.0  

Antra Bhilatiya

Romance

चाय और वो

चाय और वो

1 min
519


चाय की तलब और प्यार की भूख थी 

जो मुझे अक्सर उस रास्ते ले जाया करती थी


पता ही नहीं चाय के कितने घूट लगा लेता था, 

उसकी हँसती खिलखिलाती मुस्कान को देख लेता था


प्यार का इज़हार करा नहीं था और चाय का उधार चुकाया नहीं था

शायद इसी लिये नहीं करा था

ताकि अगली सुबह उसके चेहरे की मुस्कुराहट फिर देख पाऊँ

अगली सुबह फिर चाय की तलब मिटा पाऊँ


यूँ तो चाय उसे कुछ खास पसन्द नहीं थी 

बस दोस्तों के साथ रुक कर बैठ जाया करती थी,

बात बात पर हँस देती थी 

और अपनी जुल्फों को कान के पीछे कर देती थी


इन्हीं लम्हों में हमारी आँखें मिल जाया करती थी,

भले ही दो पल के लिए ही सही ये दुनिया उन्हीं में सिमट जाती थी


कुछ मुलाकातों के बाद दो चीज़े तो खत्म हो गई थी,

पहली चाय की तलब और प्यार की भूख,

दूसरी प्यार का इज़हार और चाय का उधार


जहाँ इस वक़्त सब बराबरी की बातें करते है

वहाँ हमने भी चीजों को खत्म करने में बराबरी कर ली थी


चाय का उधार मैंने चुका दिया था और

प्यार का इज़हार उसने कर दिया था।



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