ग़ज़ल
ग़ज़ल
ग़ज़ल कोई मुक्कमल हो जैसे
नयनों मे लगा काजल हो जैसे
खुबसूरत से चेहरे पर ये सादगी
चलता फिरता ताजमहल हो जैसे
संग पवन अठखेलिया करते है ये
ज़ुल्फ़े ये लहराता आंचल हो जैसे
तेज और औज से भरा चेहरा और
मन पावन और निर्मल हो जैसे
हर कोई पढ़ना और सुनना चाहता है
मेरी कोई कविता या ग़ज़ल हो जैसे...!