सिलसिला
सिलसिला
हो गए हम दूर तुमसे, सिलसिला पर रह गया
ग़लती से टूटा मेरा दिल, पास तेरे रह गया।
मिन्नतों फरियाद से आ जाये मेरे पास तो
मांग लूँ वो हाथ में जो हाथ आते रह गया।
मेरी किस्मत में नहीं है तू, करुँ कैसे यकीन
ये वही है बात रब जो, लिखते-लिखते रह गया।
तुझको न देखूँ कभी तो, चैन पाते हैं कहाँ
क्यों नज़ारा ख्वाब में कल, दिखते-दिखते रह गया।
काश तुम खरीददार बन जाओ, दिल ए नाचीज़ के
तेरी खातिर हर दफा ये बिकते-बिकते रह गया।
तुमको ही पाकर खिलेगा, नूर इस रुखसार पर
क्यों तेरा फिर साथ हमको, मिलते-मिलते रह गया।।