है एक आशा
है एक आशा
हर दफ़ा, हर बार, हर समय
मैं रोक दी जाती हूँ.
मैं भी आगे बढ़ना चाहती हूँ,आसमाँ छूना चाहती हूँ.
घर के बर्तन करने वाले इन नन्हे हाथों की भी एक आशा है, कलम पकड़ने की.
खेतों में हर दिन थकने वाले इन पैरों की भी एक आशा है, स्कूल जाने की.
आँसू से भरे मेरे आँखों की भी एक आशा है, ख़ुशी झलकाने की.
यों तो पूजते हो तुम मुझे मंदिरों में, पर घर में थूक दी जाती हूँ.
कभी किसी की माँ, किसी की बेटी
किसी की बहन कहलाती हूँ, पर तुम
इतना नहीं समझते, मुझमें भी जान है
मेरी भी एक पहचान है.
पर अब मैंने ठान ली है, मैंं भी आगे बढ़ूँगी,
तुम मुझे ज़ंजीरों में बाँधोगे पर मैं उन बंधनों को तोड़ूँगी.
अग्नि में जलकर भी,मैं खिल उठूँगी.
सृष्टि हूँ मैं,संपूर्ण हूँ मैं.
हर दफ़ा, हर बार,हर समय,आगे बढ़ूँगीं मैं.