हाय रे! दुनिया
हाय रे! दुनिया
इस दहेज ज्वाला में कितनी सीताएँ जलती रहती
हाए रे दुनिया, हाए रे मानव , हाए रे भारत की धरती
बेटी वाला मांग करे तो बेटी बेचवा कहते हो
पर बेटे जो बेचा करते, मान-प्रतिष्ठा देते हो
विपरीत धार में पता नहीं क्यों, गंगाजी हैं बहती
हाय रे दुनिया, हाय रे मानव, हाय रे भारत की धरती
कागज़ के नोटों आदि से कहाँ किसी का मन भरता है
ईख पेर कर रस चुसता जो, जैसे ही वो करता है
एक नहीं लाखों सीताएँ घुट घुट कर मरा करती
हाय रे दुनिया, हाय रे मानव , हाय रे भारत की धरती
पोथी गणना और लग्न से सज धज शादी होती है
गणपति शिवजी देवगान से कन्या पूजित होती है
देव न कोई रक्षा करता , बहुएँ हैं जलती रहती
हाय रे दुनिया, हाय रे मानव, हाय रे भारत की धरती
राजा राममोहन की धरा पे, यूँ बहुएँ हैं जलती क्यों
दुःख की बदली नित इनकी आँखों में छाई रहती क्यों
उस समय जलती थी विधवा, इस समय सधवा जलती
हाय रे दुनिया, हाय रे मानव, हाय रे भारत की धरती
ओ भाई ओ बहन माताओं, आओ नूतन रह अपनाएं
“श्रीनाथ आशावादी” कहते, घर घर में अलख जगाएँ
सामाजोध्हार संघ चीख रहा है, क्यों बहनें घुटती रहती
हाय रे दुनिया, हाय रे मानव, हाय रे भारत की धरती