।।आँगन की कली ।।
।।आँगन की कली ।।
मत करो मेरा अपमान ।
समस्या नहीं, हूँ मैं समाधान ।।
हूँ मैं ज्ञानमयी, गीता ।
हूँ मैं त्यागमयी, सीता ।।
हूँ मैं सहनशील, द्रौपदी ।
कुन्बे के दुखों की, औषधी ।।
मेरे होने का सबको, दो संज्ञान।
समस्या नहीं, हूँ मैं समाधान ।।
हूँ मैं अपने आँगन की, फुलवारी ।
है मुझसे ही रौनके, सारी ।।
ऊँची करने दो, अपनी उड़ान ।
खिलने दो मेरी भी, मुस्कान ।।
बनाने दो मुझे, अपनी पहचान ।
समस्या नहीं, हूँ मैं समाधान ।।
हूँ मैं पावन पवित्र गंगा ।
रूप मेरा धर्मों में, न रंगा ।।
हूँ मैं वेदों की ऋचाएँ ।
है मुझसे पौराणिक गाथायें ।।
मैं कला संगीत, हूँ मैं विज्ञान ।
समस्या नहीं, हूँ मैं समाधान ।।
हूँ मैं हिमालय का निर्मल जल ।
मुझसे ही है तेरा, आने वाला कल ।।
हूँ मैं शिव की प्रिय शक्ति ।
रौंद कर मुझे करते हो, मेरे ही भक्ति ।।
है मुझसे भूत भविष्य, वर्तमान ।
समस्या नहीं, हूँ मैं समाधान ।।
बदलना है यदि समाज ।
तो कंठस्थ करलो यह बात ।।
मत मुझे बढ़ने से रोको।
वक्त है, अपने बेटों को टोको ।।
मत मानो बेटों को, इतना विशेष ।
वरना रहेगा, न मेरा अस्तित्व शेष ।।
क्योंकि है, मुझमें भी प्राण ।
समस्या नहीं, हूँ मैं समाधान ।।