प्यार : एक आग का दरिया
प्यार : एक आग का दरिया
कहते हैं ,पहला प्यार एक अजीब दास्ताँ होती है
अनोखे अनुभवों का एक खूबसूरत कारवां होती है
ऐसा सच में होता है, विश्वास नहीं होता था
मुझे इससे बचाने के लिए सबने टोका था
लेकिन क्या करूँ , मैं भी थी १६ बरस की ,
जोश चढ़ी थी उड़ान की!
दीदी की शादी थी , मुझे अभी भी याद है,
दूल्हा का करीबी दोस्त था वो, बड़े दिनों पहले की बात है।
वो जब उसे देखा था मैंने पहली बार,
फट से शर्मा गयी थी मैं, दौड़ गयी थी बाहर।
वो उम्र में बड़ा था मुझसे ५ या ६ साल ,
पर उसे भी भा गए थे मेरे काले लम्बे बाल।
पूरी शादी में हम दोनों आँखों से लुका छिपी खेलते रहे,
बिदाई क दिन, वो अचानक चाय पिने चले ?"
सर्दी का मौसम था, मौका भी था,
मैं भी हड़बड़ाकर बोली , "जी... जैसा "
उस चाय की दुकान पर मानो , सर्दी में भी गर्मी लग रही थी,
उसे चुपके से देख कर ,हौले हौले आहे भर रही थी।
कहानी तो प्यार की शुरू हो गयी थी ,
पन्ने इश्क़ किताब के मैं लिख रही थी।
देखते देखते १ साल बीत गया ,
मैंने बस दसवीं पास की ही थी,की वो रिश्ता लेकर आ गया।
हैरान हो गयी मैं, थोड़ा परेशान भी,
भई सपने भी थे मेरे कुछ, मुसीबत में न पड़ जाये ज़िन्दगी की उड़ान भी!
बिरादरी एक ही थी , तो शादी पक्की हो गयी और बंद हो गयी पढाई ,
दूल्हा तोह मेरे पसंद का था ,पर शादी की बात कुछ समझ नहीं आयी।
कहते हैं , पहले प्यार से शादी होना भाग्य की बात है,
मगर मेरी कहानी की सुबह तोह कभी हुई नहीं , बड़ी लम्बी काली रात है।
शादी क बाद पता चला , प्यार मुहसे कम और दहेज़ से ज़्यादा था,
उन्हें प्यार निभाना नहीं , बस रात गुज़ारना आता था।
जब मन हो मरते पीटते थे,
लड़की निकली तो गर्भपात करवाना है रटते थे।
२ साल शादी क बाद भी गर्भवती न हो पाई थी,
तोकितना दहेज़ लाई थी??
ता उम्र तुझे खिलाएंगे क्या ?हाँ??
तू बांज है, तेरी माँ ने ये भी तोह न बताई थी !"
बहुत हो गया था , अब सेहन नहीं हो रहा था,
मैंने भी बोल दिया , "आप सब जानवर हो ,ये भी कहाँ पता था ?"
गलती थी या बहादुरी , मालूम नहीं ,
पर जब ज़िंदा आग लगायी थी तोह दर्द काम और राहत ज़्यादा पायी थी।
वो नादान प्रेमिका उस आग में राख हो गयी थी ,
पर मैं ज़िंदा थी और खुद एक मिसाल बन गयी थी।
मैंने अपनी लड़ाई फिर खुद लड़ी ,
हाँ लेकिन ज़िन्दगी में काफी मशक्कत करनी पड़ी।
आधा शरीर जलाकर मैंने सच्चा प्यार क्या है जाना है