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Bina Goyal

Romance

4  

Bina Goyal

Romance

एक इल्तिजा

एक इल्तिजा

2 mins
320



कोई तर्क न देना आज 

बहते हुये मेरे अल्फ़ाज़ों पर

बस दो घड़ी पास

ख़ामोशी से बिता देना 

बैकग्राउंड में चलते हुए म्यूजिक पर 

तुम्हारे करीब उड़ेल देना चाहती हूँ खुद को 

कर सको अगर कोशिश करना 

मुझे उस छोर से सुनने की

भर चुकी हूँ जहां तक दर्द की आहों से

जानती हूँ--होगा अभाव समय का तुम्हारे पास

फिर भी मेरे प्रिय,आज कुछ पल मुझपर 

उधार कर देना


न न इन्हें शिकायतों की पोटली न समझना

कुछ अंश है सिर्फ मेरे ख़यालों के

पा न सकी तुम्हारे शब्दों में 

अपने लिए दो मीठे बोल कभी 

उन्हीं लम्हों की दबी आस है

सुनो! उम्मीद की गाँठ बांधे जा रही हूँ

उम्र भर सींचा है इस बगिया को 

एक तस्वीर मेरी घर की दीवार पर सजा देना

जीते जी तो मिला नहीं

शायद ! अंतिम विदाई वो स्नेह मिला दे मझको

जब प्रवाह करो गंगा में अस्थियाँ मेरी

कुछ बूंद अपनी होंठो की मुस्कान 

भी साथ बहा देना..


वो देख रहे हो लटकी हुई खिड़की पर 

बरसों पुरानी वह विण्ड चेम 

कभी वक़्त बेवक़्त उसकी खनक सुनाई पड़े

कोई दस्तक़ दरवाज़े पर 

इस भ्रम में आधी रात नींद खुल जाए

बिस्तर से उठो अपने और

चाँदनी आकर कदमों में बिछ जाए

शायद !है कोई अपना पास

ये सोच थोड़ा झुककर उस रोशनी को 

आत्मसात कर लेना..


जब कभी हड़बड़ाहट में

दफ़्तर की कोई फाइल ढूंढते वक़्त

कोई ख़त बरसों पुरानी 

अलमीरा के किसी कोने से गर तुम्हारे हाथ आ जाये

उड़ती हुई धूल आँगन में 

कोई सूखी पत्ती साथ ले आये

कभी बेमौसम बरसात की बूंदे जब छू जाए

और ऐसे में बेचैनी दिल मे घर कर जाए

इनको इत्तफ़ाक न समझना

बस इतनी सी इल्तिज़ा है 

उस पल आसमाँ की ओर देख 

एक बार मुस्कुरा देना

मेरे हमदम घड़ी दो घड़ी मझको याद कर लेना...!!!



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