दृढ़ संकल्प
दृढ़ संकल्प
खड़े रहो तुम अपनी परछाई में,
जिसको सूरज ने बनाया।
जाओ उस राह में तुम,
जिसको तुम्हारे मन ने चाहा।
कहीं न कहीं, कभी न कभी,
होना चाहिए एक दृढ़ संकल्प मन में।
जो कुछ भी हो इरादा किसी का,
होना चाहिए वह मानवता के लिए।
न किसी का मोह, न किसी का लोभ;
देगी तुम्हें कोई उपहार।
वहीं के वहीं पड़े रहोगे,
करके पीड़ा दिन-रात।
एक मयूर तुम्हें मिलेगा,
काली-से-काली रातों में;
वह रश्मि तुम्हें पहुँचा देगी,
ऐसी जगह में-
जो होगी सुखदायक,
जैसे की चाँद में।
पर चाँद तक पहुँचने के
संघर्ष को लाँघना होगा तुम्हें,
तभी तुम्हारा संकल्प हो सकता है
एक दृढ़ संकल्प,
जिससे मिलेगी सफलता तुम्हें।।