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माहिया "समीर"

Inspirational

4.7  

माहिया "समीर"

Inspirational

बादल तेरी याद

बादल तेरी याद

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731


आ गए हैं अब बादल 

छा गए हैं अब बादल 

नीले काले हैं ये बादल,

पानी वाले हैं ये बादल


कोई अब रहने न पाए

कोई अब कहने न पाए

कि गर्मी बहुत घनी है 

धरती तवे सी बनी है 


किसान अब रोने न पाए

फसल अब तो लहलहाए

कर्ज उसका मोड़ देना

जान उसकी छोड़ देना


हम पे क्यों न तरश आया

हाय कहाँ तू बरश आया

क्या ये तूने टिमटिम लगाई

अभी तो बछिया नही नहाई


बैल गांय सब अड़े हैं

चारा छोड़ सब खड़े हैं 

तेरे आने की हैं राह में

सब के सब हैं टाह में


पिछले साल की वो बात

शिवरात्रि की थी वो रात 

तू आया था चला गया था

मन सबका जला गया था


अबकी बार वैसा न करना 

घाव अबकी वो भी भरना 

और मरहम लगा के जाना

पानी कुछ बरसा के जाना


नयन हमारे तरश गए थे

तेरे आने पे बरस गए थे

आँखों से गिरता था पानी

हर किसी की यही कहानी


बच्चे गली में जा रहे हैं

बादल तुझे बुला रहे हैं

अब वो धूम मचायेंगे 

नंगे बदन सब नहायेंगे


उन चंचल मन को देख

सपने वो सजा रहे हैं

नन्हें हाथों से बुला रहे हैं

अपने मन को हर्षा रहे हैं


छत पर चढ़ पकड़ लूँगा

बाजुओं में जकड़ लूँगा

बादल तुझे जाने न दूँगा

अब और बहकाने न दूँगा


हमें है अपनी नाव चलानी

नहीं चलेगी तेरी मनमानी

हैं मिट्टी के यूँ बांध बनाने

पानी के नाले तुझे चलाने


पँछी तुझे हैं छूकर आते 

अपने चूजों को वो बतलाते 

घोसलों में वो गा रहे हैं

जल्द मिलने वो आ रहे हैं


छोटे छोटे हैं पँख अभी

फड़फड़ा कर देखें सभी

कब तक हम उड़ पाएँगे

नील गगन में लहल्हायेंगे


अपनी माँ से पूछते हैं

बात बात पर रूठते हैं

कब हम दाना खुद खायेंगे

बारिश में यूँ कब नहायेंगे


थके हारे खेत से आएं हैं बाबा

कुछ कुछ मुरझाए हैं बाबा

फ़सल को ले सोच रहे थे 

अपने बालों को नोच रहे थे 


बैल मुझे ये बतला रहा था

मालिक कुछ बड़बड़ा रहा था

फसल की थी प्यास बाकी

बादलों पर थी आस बाकी


चातक है तेरी आस में

बहुत दिनों से है प्यास में

तेरी बिन नहीं पीता पानी

हाय कैसी ये विपदा जानी


सब प्यासे हैं अब जंगल में

कोई नहीं है अब मंगल में

सबके कंठ सूख गए हैं 

पानी सब चूक गए हैं 


मस्ती अब बहुत दूर जा ली 

दरिया जब से हुए हैं खाली

हाथी अब नहीं गाता गाना 

गिलहरी का मिट्टी में नहाना


पीपल खड़ा मुस्कुरा रहा था 

नीम को कुछ बतला रहा था 

बादल की है ये नादानी

क्यों नहीं बरसाता पानी 


नन्हें पौधे जल जाएँगे

कैसे वो भोजन पाएँगे

पतली जड़ें पतले पात्त

उनकी है पहली बरसात


चुपके से तू रात में आजा

धीरे से बरसात में आजा

पाँव अपने बजा न देना 

बादल सबको जगा न देना 


मैं हूँ कुछ कुछ प्यास में

तेरे मिलन की आस में 

दिन में यूँ चैन न आता 

करवटों में रात बिताता 


तेरे लिए यूँ तरस गया था

मैं आँखों से बरस गया था

"समीर" के झोंके के साथ 

आज आ जाना मेरे पास।


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