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Gritiksha Varma

Romance

5.0  

Gritiksha Varma

Romance

मोहब्बत

मोहब्बत

1 min
233


बड़े अरसे बाद यूं राहत हुई है

दिल के दरवाज़े नई-सी आहट हुई है।

अजनबी इस कदर अपना लगा मुझे

जैसे पुराने यार की सोहबत हुई है !


वो कुछ मुझ-सा, कुछ खुद में दिवाना है

खुद में एक दुनिया पर दुनिया से बेगाना है !

गज़ब-सी तपिश है लफ़्ज़ों में उसके

जैसे उसी की आग से खिदमत हुई है !


हर एक लफ्ज़ में यूं नूर-सा है

जैसे पतझड़ में कोई गुल खिला है

उसकी कही-अनकही

हर एक बात से चाहत हुई है !


मिल जाए अगर तो बैठ के बातें ढेर सारी कर ले

यूं आईने से बस दो-चार मुलाकात हुई है !

वो सुलझा हुआ है या पहेली,

मैं महफिल की रौनक या अकेली।


कौन क्या है क्या पता

और जानने को वक़्त कहां !

हम तो भई आशिक है ठहरें,

मोहब्बत से न फुर्सत हुई है !


उसको पा लेना तो वैसे ख्वाब़ था सबका

बिन बताए पूरी मेरी हर इबादत हुई है !

 बेदर्द जमाने से ठुकराई हुई मैं

आज फिर किसी के दिल में सियासत हुई है !


इस कदर मुझ ही में वो समाता चला गया

स्वयं को चाहूं या उसे ? बस मोहब्बत हुई है !


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