जीवन की परिभाषा
जीवन की परिभाषा
जीवन की डोर
उस पतंग की डोर कि तरह है
जो कब कैसे कटकर गिरे उस ओर
यह कोई नहीं जानता है।
जीवन एक अजीब मंत्र है
जिसका असर क्षणीक है
जब तक तुम मे जाप करने की क्षमता है
वह असर दिखाएगी और
जब आप हांफने लगे वह बेअसर हो जाएगी।
जीवन एक ऐसी कहानी है
जिसका लेखक खुद
कभी कभी अचंभित हो जाता है
क्योंकि वह लिखना कुछ और चाहता है
परंतु लिख कुछ और ही देता है।
दोस्तों - हम सब
इसी जीवन रुपी नाटक के कलाकार हैं
अपनी प्रतिभा और कौशल के अनुसार
अपना जलवा दिखाकर , किरदार निभाकर
एक एक करके इस रंगमंच को
अलविदा कहते हुए प्रस्थान कर जाएंगे।
पर्दा कब गिर जाए
इसका अंदेशा कोई नहीं लगा सकता
खुद नाटककार हक्का बक्का रह जाता है
जीवन के इस घुमाव और मोड़ से।
सब बस देखते रह जाएंगे
और कोई किसीको रोक भी नहीं पाएगा
क्योंकि जीवन की डोर कच्ची है
और इसे संभालना मुश्किल है।