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Kanchan Jharkhande

Inspirational

5.0  

Kanchan Jharkhande

Inspirational

मुफ़लिस

मुफ़लिस

2 mins
442


मुझे गर्व है कि मुफ़लिस ने मुझे जन्मा

मुझे परवाह नहीं संसार मुझे किस नजर से देखें

इस धरती पर मेरा अधिकार सिद्ध हैं

मैंने ज़िया है इस माटी की खुशबू को


मेरे रग रग में बसी है इसकी ताकत

मुझे प्रिय है मेरी अनुवर्ता 

मैंने महसूस किये है लाचारी के पल

मुझे स्मरण है मेरी माँ का माथे 

पर मिट्टी का गट्ठा लाना


मैंने गुजारे है दिन किलपान के

मैंने सहीं है कुटुम्ब की भुखमरी 

चूल्हे की फूंक और ठंडी लकड़ी का धुआँ

आधी पकी आधी कच्ची रोटी का स्वाद

मिर्ची संग नमक का आपन्न और 

मैंने झेला है उच्च जातीय द्वारा 

किया गया भेदभाव, पक्षकोम।


निर्जल आँखों में थी फिर भी रही प्रेम भावनाएं

क्योंकि माँ ने नहीं सिखाया कभी पक्षपात

माँ ने पढ़ाया तो केवल उभरने के अध्याय

माँ ने बताई मेहनत की पगडंडी

कच्ची माटी का वो घर आज भी आँखों के सामने है

जो अब पक्की सीमेंट की दीवारें बन गयी है


माटी का आँगन भी अब मिंटो हाल बन गया

चूल्हे की जगह गैस पर उबलता है दूध का भगोना

वस्त्रों की वेशभूषा भी तो बदल गयी है

ओर बदल चुका उन चिड़ियों का रास्ता

जो उन दिनों एक झुंड बनाकर

घर के ऊपर से गुजरती थी


सूरज का ढलना तो जारी है पर 

ऊंची इमारतों के पीछे छिप जाता हैं अब

मन्दिर का पीपल का पेड़ भी कट चुका

जिनमें झूले थे हमने मित्रों संग झोंकें

सच कहूँ तो…


उन उत्पीड़न के पलों ने दी मुझे आज़ादी

मजबूत रखा मेरे हौसलों को 

मुझे सहारा दिया गरीबता कि विपत्तियों ने

आख़िर उसका शुक्रियादा कैसे ना करूँ


मेरी गरीबता ने मुझे आसमान

छूने के जरिये सिखाये

आज मैं हूँ जो भी हूँ 

तह ऐ दिल से आभार 

मेरी गुजरी हुई गरीबी को

मुझे फ़क्र है कि मैं मुफ़लिस हूँ।


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